Sunday, August 15, 2021

भले पैर टूट जाता, मैडल तो चाहिए था... इन 8 सवालों के जवाब में बजरंग पूनिया ने पूरी कहानी बता दी August 15, 2021 at 03:21PM

नई दिल्ली तोक्यो ओलिंपिक में पहलवान ने अपने पैर में तकलीफ होने के बावजूद मैडल जीता। पद्मश्री, अर्जुन पुरस्कार और राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित बजरंग पूनिया ने अपनी मेहनत और लगन के बल पर इतनी बड़ी सफलता पाई है। ओलिंपिक से लौटने के बाद उनसे बात की संध्या रानी ने। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के मुख्य अंश :
  1. अब आगे की योजना क्या है?मुझे बहुत ही अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इस बार मैं अपने देशवासियों की अपेक्षा पूरी नहीं कर पाया। लेकिन 2024 में जो पेरिस में ओलिंपिक होने वाला है, उसके लिए मैं अभी से ही मेहनत करूंगा और देश को निराश नहीं करूंगा।
  2. फाइनल मुकाबले में जाने से पहले किस तरह के संघर्षों से गुजरना पड़ता है?यह सच है कि सेमीफाइनल में हारने के बाद मैं थोड़ा नर्वस हो गया था, लेकिन जब मेरे कोच बृजभूषण जी ने बहुत ही प्यार से कहा कि जो हो गया उसे भूल जाओ। जो सामने है उसे देखो और उसी पर अपना फोकस रखो। तुम्हें तकलीफ है, इसमें कोई संशय नहीं है फिर भी तुम्हें पदक जीतना ही है। फिर मैंने फाइट की और रिजल्ट आपके सामने है।
  3. दाहिना घुटना चोटिल होना ही तो कहीं कांस्य पदक तक सीमित रहने की वजह हीं है?डॉक्टर ने तीन-चार हफ्ते आराम को कहा था, लेकिन मैंने नहीं किया। परिणाम यह हुआ कि एक पैर पर अधिक भार देने से बाएं पैर की भी मसल्स खिंच गई। इसके कारण मेरा मूवमेंट सही तरीके से नहीं हो पा रहा था। तब मेरे फिजियोथेरपिस्ट मनीष जी ने कहा कि यह समय भी निकल जाएगा। अगर मूवमेंट सही से होता, तो आज मैडल का रंग कुछ और ही होता।
  4. आपने डॉक्टरों की सलाह नहीं मानी, तो क्या आगे 65 किलोग्राम वजन वर्ग बदलने की कोई संभावना है?ओलिंपिक में मैडल जीतना ही मेरा सपना था। यह सपना साकार हुआ। इसकी मुझे बेहद खुशी है और इसके लिए ईश्वर को धन्यवाद देता हूं। मेरे लिए पैर से अधिक पदक जीतना ज्यादा जरूरी था। भविष्य में वजन वर्ग बदलने की कोई संभावना नहीं है। मेरा वेट 65 किलोग्राम ही रहेगा।
  5. चोट की वजह से आप 25 दिनों तक प्रशिक्षण से दूर रहे। उस बीच खुद को कैसे मोटिवेट करते थे?उस समय आराम के साथ-साथ दिन में दो या तीन बार एक्सरसाइज करने के लिए भी कहा गया था। फिर भी मैंने डॉक्टर से पूछा कि क्या मैं एक्सरसाइज इससे अधिक कर सकता हूं, तो उन्होंने कहा कि आप जितना चाहो उतना कर सकते हो। इसमें कोई दिक्कत नहीं है। दरअसल मैं दिन में सोता नहीं था। इसलिए मुझे जितना समय मिलता था, पैर की एक्सरसाइज करता था। इसके सिवाय मेरे पास कोई काम भी नहीं था।
  6. क्या पहले से ही माइंड सेट रहता है कि पदक तो जीतना ही है?सच पूछो तो ऐसा कुछ नहीं होता है। जिस तरह किसी भी फील्ड में बेहतरीन करने के लिए जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ती है, वैसे ही खेल में भी कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। बिना मेहनत के तो कुछ भी मिलने वाला नहीं है। मेहनत करने से ही हमारे अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है और हम अपने लक्ष्य के प्रति बहुत ही पॉजिटिव हो जाते हैं। मैंने भी अपने खेल को बेहतर करने के लिए बहुत मेहनत की थी।
  7. तोक्यो ओलिंपिक की तैयारियों में विदेशी कोच की कितनी भूमिका रही है?मेरे विदेशी कोच की भूमिका बहुत रही है, इससे मैं इनकार नहीं कर सकता। उनका नाम शाकू है और वह जॉर्जिया के रहने वाले हैं। हालांकि वह मेरे पर्सनल कोच हैं। इसके अलावा जगबिंदरजी और अनिल मानजी का भी हमारे ऊपर बहुत फोकस रहता है। अगर मुझसे कोई गलती होती थी, तो दोनों आपस में बातचीत करते थे। उन्होंने हम पर बहुत मेहनत की है। दोनों का मुझे बहुत सहयोग मिला है।
  8. सेमीफाइनल में हारने के बाद भी आपको जीत की उम्मीद थी?जिस तरह हमारे जीवन में हार-जीत चलती रहती है, वैसे ही खेल में भी चलती है। जो बीत गई, सो बात गई। मैं पीछे मुड़कर नहीं देखता हूं। अब जो सामने बचा हुआ है, उसी पर फोकस करना है। उस समय दिमाग में बस एक ही बात चलती रहती थी कि हर हाल में मुझे अब जीतना है। चाहे पैर ही क्यों न टूट जाए, पर मैडल तो चाहिए ही।

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