Wednesday, January 27, 2021

'गूंगा पहलवान' जिसकी जुबां नहीं कामयाबी करती है बात... January 26, 2021 at 09:56PM

रेसलर जिन्हें '' भी कहते हैं- को उनके शानदार प्रदर्शन के लिए पद्मश्री मिला है साबी हुसैन, नई दिल्लीतीन बार के डेफलिंपिक्स गोल्ड मेडलिस्ट विरेंदर का नाम सोमवार को पद्म पुरस्कार विजेताओं की लिस्ट में शामिल था। वह बोलने में असमर्थ कम्युनिटी के पहले ऐथलीट हैं जिन्हें इस पुरस्कार के लिए चुना गया। यह उनकी प्रतिभा और मेहनत को पहचान देने की बात है। यह दिव्यांग समुदाय के लिए भी एक गर्व की बात है। विरेंदर की जब हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ मुलाकात हुई तो वह परेशान दिख रहे थे। 35 वर्षीय इस पहलवान के साथ रामबीर डागर थे। रामबीर 25 साल से विरेंदर के साथ हैं। विरेंदर की अपनी (संकेत) भाषा में कहें तो रामबीर उनके भाई की ही तरह हैं। डागर से जब विरेंदर की परेशानी की वजह पूछी गई तो उन्होंने बताया कि उनका एक महीने का बेटा काफी बीमार है। उनकी पत्नी अंजिल सिंह, जो स्वयं बोलने व सुनने में असर्मथ हैं, सुबह से कई बार वॉट्सऐप कॉल कर चुकी हैं। जवाब में विरेंदर ने उन्हें आश्वस्त किया है कि वह जल्द ही घर वापस लौटेंगे। अपने परिवार की स्थिति के बावजूद विरेंदर अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि के बारे में बात करने के लिए तैयार हो गए थे। विरेंदर से साइन लैंग्वेज में बात करने के बाद डागर ने बताया, 'वह अपने बेटे की सेहत के बारे में फिक्रमंद हैं। लेकिन विरेंदर एक मजबूत इनसान हैं। वह एक फाइटर हैं। वह पद्म अवॉर्ड पाकर काफी खुश हैं। काफी लंबे समय से इस अवॉर्ड का इंतजार था। यह उन्हें मई में तुर्की में होने वाली डीफ वर्ल्ड चैंपियनशिप और इस साल दिसंबर में ब्राजील में होने वाले डीफलिंपिक्स में बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित करेगा। उनकी बस एक ख्वाहिश बाकी है- राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड जीताना। उम्मीद है कि इन दो इवेंट्स में गोल्ड मेडल जीतकर वह अगले साल के दावेदार बनेंगे।' डागर ने कहा कि विरेंदर का करियर शादी के बाद बदला। अंजलि को नागपुर में उनके अंकल ने पाला था। दोनों की शादी 30 जनवरी 2020 को हुई। डागर ने बताया, 'शादी के एक महीने बाद ही, विरेंदर को खबर मिली कि केंद्र सरकार ने डेफलिंपिक्स को मान्यता दे दी है और इसमें भाग लेने वाले ऐथलीटों को ओलिंपिक और पैरालिंपिक्स के समान ही माना जाएगा। इससे वह सरकारी नकद इनाम के हकदार हो गए। अब उन्हें बच्चे के जन्म के एक महीने बाद पद्म श्री के लिए चुना गया है। यह उनके जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय है।' विरेंदर का सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है। साल 2013 में स्पोर्ट्स डॉक्यूमेंट्री गूंगा पहलवान में उनके जीवन और संघर्ष को बयां किया गया है। वह जन्म से ही बोल और सुन नहीं सकते थे। लेकिन उनके पिता अजीत सिंह (रिटायर्ड CISF अधिकारी), जिनकी उम्र अब 62 साल है और चाचा सुरेंदर सिंह (CISF में इंस्पेक्टर) ने उन्हें रेसलिंग के साथ जोड़ा। दोनों रेसलिंग से जुड़े रहे और उन्होंने देशभर में कई दंगल में भाग लिया है। विरेंदर ने मर्जी से नहीं बल्कि मजबूरी में रेसलिंग का हाथ थामा। वह हरियाणा के झज्जर इलाके के ससरोली गांव में पैदा हुए। विरेंदर जब सिर्फ आठ साल के थे तो पैर में चोट लग गई। पिता इलाज के लिए दिल्ली लेकर आए। इसी समय अजीत का भी ऐक्सीडेंट हो गया और वह कई महीनों तक बिस्तर पर ही पड़े रहे। वह अब बेटे की देखभाल नहीं कर सकते थे ऐसे में उन्होंने विरेंदर को दिल्ली के सदर बाजार इलाके स्थित पुल मिठाई पर रहने वाले उनके चाचा के पास भेज दिया। चूंकि सुरेंदर को CISF की अपनी ड्यूटी पर जाना था इसलिए उन्होंने विरेंदर को इसी इलाके में बाल व्यायामशाला अखाड़ा में भेज दिया गया जहां कुश्ती से उनकी पहली मुलाकात हुई। जल्द ही सुरेंदर ने उन्हें पर्सनल कोचिंग देनी शुरू की। 'गूंगा पहलवान' दिल्ली के मोरी गेट इलाके में दंगल में भाग लेने लगा। विरेंदर ने अपना पहला बड़ा टाइटल 'नौशेरवां' खिताब जीता। यहां उन्हें 11 हजार रुपये का नकद पुरस्कार मिला। दंगल से मैट कुश्ती भी ऐसी ही रही। उन्होंने 2002 में हरिद्वार में कैडेट नैशनल्स में 76 किलोग्राम भारवर्ग में जीत हासिल की। इसके बाद उन्हें उनके पहले इंटरनैशनल कॉम्पीटिशन के लिए चुना गया। हालांकि बाद में उनकी जगह पर दूसरे स्थान पर रहने वाले पहलवान को चुना गया। हालांकि विरेंदर को यह बात बुरी लगी कि उनकी शारीरिक कमजोरी के चलते उन्हें नजरअंदाज किया गया। इससे उनका दिल टूट गया और वह जीवनयापन करने के लिए दंगल में लौट गए। साल 2005 में उन्होंने वह हासिल किया जो कोई अन्य बोलने में असमर्थ पहलवान नहीं कर पाया था। उनके पिता और अंकल को डेफलिंपिक्स के बारे में पता चला। उन्होंने विरेंदर के सफर के लिए 70 हजार रुपये का बंदोबस्त किया। उन्होंने वहां मेलबर्न में गोल्ड मेडल जीता। हालांकि इस जीत ने न उन्हें कोई पहचान दिलाई और न ही कोई आर्थिक लाभ ही पहुंचाया। तब से विरेंदर दंगल और डेफलिंपिक्स व वर्ल्ड चैंपियनशिप्स के बीच झूल रहे हैं। पद्म अवॉर्ड से पहले उन्हें एकमात्र पहचान साल 2016 में अर्जुन अवॉर्ड का मिलना था। डेफलिंपिक्स क्या हैं डेफलिंपिक्स अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक्स कमिटी द्वारा अनुमति प्राप्त एक इवेंट है जिसमें डीफ ऐथलीट उच्च स्तर पर प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। आईओसी के अन्य इवेंट्स के उलट इसमें ऐथलीट्स को आवाज के जरिए निर्देशित नहीं किया जा सकता। इन खेलों का आयोजन इंटरनैशनल कमिटी ऑफ स्पोर्ट्स फॉर दे डीफ द्वारा 1924 से किया जा रहा है। और इसका आयोजन हर चार साल में किया जाता है।

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