Friday, August 6, 2021

जब नंगे पैर और टूटे दांत के साथ खेले थे मेजर ध्यानचंद, हिटलर ने भी किया था सैल्यूट August 06, 2021 at 06:34AM

नई दिल्लीहॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद के नाम के आगे एक और सम्मान जुड़ गया। उनके नाम पर भारत का सर्वोच्च खेल अवॉर्ड 'खेल रत्न' दिया जाएगा, जो पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर था। इसका ऐलान पीएम नरेंद्र मोदी ने किया। दरअसल, ओलिंपिक हॉकी में पुरुष और महिला हॉकी टीम ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। पुरुष टीम ने 41 साल बाद ओलिंपिक में मेडल जीता तो महिला टीम ने ऐतिहासिक सेमीफाइनल तक का सफर तय किया। इस खास मौके पर पीएम मोदी ने 'राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार' का नाम बदलकर 'मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार' रख दिया। ध्यानचंद का नाम आज भी हॉकी की दुनिया में बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। दुनियाभर में उनकी हॉकी का जादू चलता था। हिटलर तक उनका फैन था। एक बार तो किसी के सामने नहीं झुकने वाले हिटलर ने उन्हें सैल्यूट भी किया था। 1936 बर्लिन ओलिंपिक में जर्मनी को हरा जीता था गोल्डदरअसल, भारत को स्वतंत्रता मिलने से 11 साल पहले यानी 1936, 15 अगस्त के दिन ध्यानचंद की अगुआई में भारतीय हॉकी टीम ने करिश्माई प्रदर्शन करते हुए बर्लिन ओलिंपिक फाइनल में जर्मनी को हराकर पीला तमगा अपने नाम किया था। उस मैच में हिटलर की मौजूदगी भी थी। ओलिंपिक के उस मुकाबले और हिटलर के ध्यानचंद को जर्मन नागरिकता का प्रस्ताव देने की दास्तां भारतीय हॉकी की किवदंतियों में शुमार है। ध्यानचंद के बेटे और 1975 विश्व कप में भारत की खिताबी जीत के नायकों में शुमार अशोक कुमार ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘उस दिन को वह (ध्यानचंद) कभी नहीं भूले और जब भी हॉकी की बात होती तो वह उस ओलिंपिक फाइनल का जिक्र जरूर करते थे।’ समुद्र के रास्ते लंबा सफर तय करके भारतीय हॉकी टीम हंगरी के खिलाफ पहले मैच से दो सप्ताह पहले बर्लिन पहुंची थी लेकिन अभ्यास मैच में जर्मन एकादश से 4-1 से हार गई। टूटा दांत भी नहीं रोक सका जादूपिछले दो बार की चैंपियन भारत ने टूर्नामेंट में लय पकड़ते हुए सेमीफाइनल में फ्रांस को 10-0 से हराया और ध्यानचंद ने चार गोल दागे। फाइनल में जर्मन डिफेंडरों ने ध्यानचंद को घेरे रखा और जर्मन गोलकीपर टिटो वार्नहोल्ज से टहराकर उनका दांत भी टूट गया। ब्रेक में उन्होंने और उनके भाई रूप सिंह ने मैदान में फिसलने के डर से जूते उतार दिए और नंगे पैर खेले। ध्यानचंद ने तीन और रूप सिंह ने दो गोल करके भारत को 8-1 से जीत दिलाई। यह उनका खेल ही था कि हिटलर जैसे तानाशाह ने मैच के बाद उन्हें सैल्यूट भी किया। रात को ली थी तिरंगे की सपथअशोक ने बताया, ‘उस मैच से पहले की रात उन्होंने कमरे में खिलाड़ियों को इकट्ठा करके तिरंगे की शपथ दिलाई थी कि हमें हर हालत में यह फाइनल मैच जीतना है। उस समय चरखे वाला तिरंगा था क्योंकि भारत तो ब्रिटिश झंडे तले ही खेल रहा था।’ उन्होंने कहा, ‘उस समय विदेशी अखबारों में भारत की चर्चा आजादी के आंदोलन, गांधीजी और भारतीय हॉकी को लेकर होती थी। वह टीम दान के जरिए इकट्ठे हुए पैसे के दम पर ओलिंपिक खेलने गई थी। जर्मनी जैसी सर्व सुविधा संपन्न टीम को हराना आसान नहीं था लेकिन देश के लिए अपने जज्बे को लेकर वह टीम ऐसा कमाल कर सकी।’ वह ध्यानचंद का आखिरी ओलिंपिक था। तीन ओलिंपिक के 12 मैचों में 33 गोल उनके नाम हैं।

No comments:

Post a Comment