Tuesday, September 7, 2021

दिव्यांग खिलाड़ी बता रहे, कैसे बरसेंगे और मेडल September 07, 2021 at 05:17PM

पैरालिंपिक में दिव्यांग खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। पूरा देश उनके जज्बे से गदगद है। लेकिन क्या आगे भी इसी तरह से हमारे खिलाड़ी जोरदार प्रदर्शन करेंगे और पदकों की संख्या को बढ़ाएंगे? इसके लिए सरकारों को क्या करना चाहिए। अभी दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए दिल्ली में किस तरह की सुविधाएं हैं और दिव्यांग खिलाड़ी यहां की सरकार, समाज से क्या उम्मीदें लगा रहे हैं? ये खिलाड़ी क्या सोचते हैं कि ऐसे क्या सुधार किए जाएं, ताकि आने वाली पीढ़ी भी प्रोत्साहित होकर नए कीर्तिमान स्थापित करे। यह जानने के लिए एनबीटी रिपोर्टर प्रशांत सोनी और पूनम गौड़ ने दिल्ली के ऐसे ही कुछ खिलाड़ियों से बात की ...

पैरालिंपिक में भारत ने 19 मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। यह इस टूर्नमेंट में भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। हालांकि सवाल यह है कि क्या भारत में पैरा खेलों का ऐसा प्रदर्शन आगे भी जारी रहेगा। और सरकारों को इसके लिए क्या करना चाहिए।


दिव्यांग खिलाड़ी बता रहे, कैसे बरसेंगे और मेडल

पैरालिंपिक में दिव्यांग खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। पूरा देश उनके जज्बे से गदगद है। लेकिन क्या आगे भी इसी तरह से हमारे खिलाड़ी जोरदार प्रदर्शन करेंगे और पदकों की संख्या को बढ़ाएंगे? इसके लिए सरकारों को क्या करना चाहिए। अभी दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए दिल्ली में किस तरह की सुविधाएं हैं और दिव्यांग खिलाड़ी यहां की सरकार, समाज से क्या उम्मीदें लगा रहे हैं? ये खिलाड़ी क्या सोचते हैं कि ऐसे क्या सुधार किए जाएं, ताकि आने वाली पीढ़ी भी प्रोत्साहित होकर नए कीर्तिमान स्थापित करे। यह जानने के लिए एनबीटी रिपोर्टर प्रशांत सोनी और पूनम गौड़ ने दिल्ली के ऐसे ही कुछ खिलाड़ियों से बात की ...



मिशन एक्सिलेंस से उम्मीद, लेकिन शुरुआत में ही मिले मदद : श्वेता शर्मा
मिशन एक्सिलेंस से उम्मीद, लेकिन शुरुआत में ही मिले मदद : श्वेता शर्मा

जब 2016 में मैंने शुरुआत की थी तो काफी समस्याएं थीं। कदम-कदम पर संघर्ष था। गेम्स में मेडल जीतने के बावजूद पैरा प्लेयर्स को जॉब सिक्योरिटी नहीं मिली है। मेरे पास भी जॉब सिक्योरिटी नहीं थी। ऐसे में मेरा संघर्ष समझा जा सकता है। 2018 में मिशन एक्सिलेंस स्कीम शुरू की गई जो 2019 में शुरू हुई। इस स्कीम से उम्मीद बढ़ी है, लेकिन अभी भी सरकार की तरफ से राष्ट्रीय स्तर के प्लेयर्स को मदद मिल रही है। शुरुआती स्तर पर कोई मदद नहीं दी जा रही है। एक प्लेयर को आगे बढ़ने के लिए शुरुआत में ही इस तरह की मदद चाहिए होती है, इससे उसकी प्रतिभा निखरकर सामने आती है। पहले पैरा प्लेयर और गेम्स को लेकर अवेयरनेस नहीं थी। अब चीजें थोड़ा बहुत बदली हैं, लेकिन इन प्लेयर्स को आगे बढ़ने के लिए काफी सपोर्ट की जरूरत है।

(शाहदरा की श्वेता शर्मा शॉटपुट और जेवलिन थ्रो में कई राष्ट्रीय मेडल जीत चुकी हैं। श्वेता सिंगल मदर हैं और दोनों बेटे उनके साथ रहते हैं।)



जॉब सिक्योरिटी मिले, तो टैलंट निकलकर आएगा : डॉली गोला
जॉब सिक्योरिटी मिले, तो टैलंट निकलकर आएगा : डॉली गोला

पैरा खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने के लिए दिल्ली सरकार की ओर से कई और कदम उठाए जा रहे हैं लेकिन दिल्ली में मेरे जैसे दिव्यांग खिलाड़ियों को अधिक प्रोत्साहन नहीं मिलता। दूसरे राज्यों की तरह ही अगर दिल्ली में भी दिव्यांग खिलाड़ियों को जॉब सिक्योरिटी मिले, तो कई छिपी प्रतिभाएं सामने आ पाएंगी। अभी सरकार की ओर से जो भी स्कॉलरशिप या मदद मिलती है, वह तब मिलती है, जब खिलाड़ी अपनी अचिवमेंट सरकार को दिखाए। उससे पहले तो खिलाड़ी को खुद ही अपने खर्च पर संघर्ष करना पड़ता है। अगर उसे चोट लग जाए तो उसका खर्च भी खुद ही उठाना पड़ता है। स्कूल और कॉलेज स्तर पर ही प्रतिभाओं को बढ़ावा देने से ही हम नई प्रतिभाओं को आगे ला सकते हैं।

(राष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीत चुकीं भजनपुरा में रहने वाली पैरा खिलाड़ी डॉली गोला (डिस्कस थ्रो) ने इसी साल मार्च में 19वीं राष्ट्रीय पैरा एथलीट चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल हासिल किया है।)



​​जब नीतियां बनें, तो उसमें दिव्यांग खिलाड़ी भी हों शामिल : नीरज यादव
​​जब नीतियां बनें, तो उसमें दिव्यांग खिलाड़ी भी हों शामिल : नीरज यादव

दिल्ली में स्टेडियमों के स्तर पर तो दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर है। स्कूल और कॉलेजों में भी काफी सुधार हुआ है, लेकिन मुझे लगता है कि दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए बनने वाली नीतियों में दिव्यांग खिलाड़ी शामिल किए जाने चाहिए। इसकी वजह यह है कि दिव्यांग ही दिव्यांग की समस्या, उसकी मनोस्थिति को समझता है।

मैं यह भी मानता हूं कि दिव्यांग खिलाड़ियों की ट्रेनिंग के लिए भी दिव्यांग कोच नियुक्त होने चाहिए। इससे दिव्यांग खिलाड़ी में विश्वास बढ़ता है। दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण वक्त वो होता है जब वह ट्रेनिंग की शुरुआत कर रहा होता है। अगर उस वक्त उसका मनोबल टूट जाए तो वह आगे नहीं बढ़ सकता। ऐसे में जरूरी है कि दिव्यांग खिलाड़ियों को शुरुआत में ऐसा माहौल और कोच मिलें, जो उन्हें मोटिवेट कर सकें और जिन्हें देखकर खिलाड़ी भी मोटिवेट हो। अभी कॉलेज स्तर पर भी दिव्यांग कोच की काफी कमी है।

इसके अलावा दिव्यांगों के लिए वित्तीय मदद महत्वपूर्ण होती है। सामान्य खिलाड़ियों के मुकाबले उन्हें अधिक खर्च करना पड़ता है। कई मौकों पर देखा जाता है कि वित्तीय मदद में दिव्यांगों के साथ भेदभाव किया जाता है। ये नहीं होना चाहिए। अगर हम चाहते हैं कि दिव्यांग खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करें तो दिव्यांगों के लिए आजीविका का भी इंतजाम होना चाहिए।

(दिल्ली के खानपुर इलाके में रहने वाले और 2018 एशियन गेम्स में जकार्ता में गोल्ड मेडल जीतने वाले जैवलिन खिलाड़ी नीरज यादव के नाम तीन नैशनल रेकॉर्ड भी हैं और वे आने वाली खेल प्रतियोगिताओं की तैयारी में जुटे हैं।)



एशियन गेम्स में सिल्वर जीतकर भी जॉब के लिए भटक रहा : विजय कुमार
एशियन गेम्स में सिल्वर जीतकर भी जॉब के लिए भटक रहा : विजय कुमार

मुझे लगता है कि दिव्यांग खिलाड़ियों को मुकाम पर पहुंचने के लिए सामान्य लोगों से अधिक संघर्ष करना पड़ता है। कई बार देखने में आता है कि दिव्यांग खिलाड़ियों के साथ भेदभाव होता है। अगर समाज यह चाहता है कि दिव्यांग खिलाड़ी सामने आएं और खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन करें तो दिव्यांग खिलाड़ियों के साथ भेदभाव खत्म होना चाहिए।

खिलाड़ी तो एक दूसरे के साथ भेदभाव नहीं करते लेकिन प्रशासनिक स्तर पर कई बार यह होता है। उदाहरण के तौर पर कई बार स्टेडियम पहुंचने पर पता चलता है कि दूसरे खिलाड़ियों की प्रैक्टिस चल रही है तो उन्हें और उनके साथियों को गार्ड ही स्टेडियम के बाहर रोक देता है। अब यह प्रशासन को समझना चाहिए कि अगर पूर्वी दिल्ली से मैं प्रैक्टिस के लिए जवाहरलाल नेहरू स्टेडयिम या त्यागराज स्टेडियम जाता हूं तो किस तरह से ट्रांसपोर्ट की दिक्कतों के बीच वहां तक मैं पहुंचता हूं। आखिर खिलाड़ी तो खिलाड़ी ही होता है, चाहे वह सामान्य हो या दिव्यांग। वह देश के सम्मान के लिए ही मैदान में उतरता है।

2018 में एशियन गेम्स में जब लॉग जंप का सिल्वर मेडल जीत कर आया तो मेरे होर्डिंग लगाए गए, बधाइयां दी गईं लेकिन उसके बाद अब ढाई साल से रोजगार के लिए भटक रहा हूं। जब सामान्य खिलाड़ी जीत कर आते हैं तो उन पर पुरस्कारों की बौछार होती है। कई सरकारें तो जॉब देती हैं लेकिन हमको आजीविका के लिए संघर्ष करना पड़ता है। अगर दिव्यांग खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करना है तो इन समस्याओं की ओर ध्यान देना होगा। पहले तो हमें कैश अवॉर्ड लगभग न के बराबर मिलता था।

डाइट और प्रैक्टिस मिलाकर ही हर महीने हमारे 40-50 हजार रुपये खर्च हो जाते थे। अब केंद्र व राज्य सरकार की कई स्कीमों के जरिए बड़े खिलाड़ियों को तो ट्रेनिंग और प्रैक्टिस के लिए कुछ पैसा मिल जाता है, लेकिन नए खिलाड़ियों को तो आज भी अपनी जेब से पैसे खर्च करके शुरुआत करनी पड़ती है। इन्फ्रास्ट्रक्चर और प्रैक्टिस से जुड़ी अन्य सुविधाओं का अभाव भी झेलना पड़ता है। मेडल जीतने वाले अच्छे खिलाड़ी चाहिए, तो सरकारों को प्रैक्टिस व ट्रेनिंग के लिए सुविधाओं की तरफ ध्यान देना चाहिए।

(पूर्वी दिल्ली के न्यू अशोक नगर में रहने वाले पैरा एथलीट और अपनी कैटिगरी में वर्ल्ड नंबर-2 विजय कुमार पिछले 13-14 साल से स्पोर्ट्स फील्ड में सक्रिय हैं और अब तक नैशनल व इंटरनैशनल लेवल पर 35-40 मेडल जीत चुके हैं।)



दिव्यांगों के लिए खास इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलप करे सरकार : विकास डागर
दिव्यांगों के लिए खास इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलप करे सरकार : विकास डागर

2019 से पहले दिल्ली में दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए सुविधाएं बहुत अधिक नहीं थीं। 2019 में मिशन एक्सिलेंस योजना शुरू होने के बाद इस क्षेत्र में काफी सुधार हुआ है। इस स्कीम के तहत सरकार पैरा एथलीट्स को ट्रेनिंग के लिए 12 लाख रुपये तक की सहायता मुहैया कराती है, ताकि खिलाड़ी देश-विदेश में ट्रेनिंग ले सकें। हालांकि कोविड की वजह से डेढ़ साल से ये योजना रुकी हुई है। दिव्यांग खिलाड़ियों को प्रैक्टिस करने के लिए बड़े स्टेडियमों में आने में परेशानी होती है।

सरकार को सुझाव है कि अगर वह स्थानीय स्तर पर छोटे स्टेडियम बनाती है, तो इससे दिव्यांग खिलाड़ी घरों के पास प्रैक्टिस कर सकते हैं। अभी दिल्ली में बड़े ही स्टेडियम हैं। वहां तक जाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन की समस्या का सामना करना पड़ता है। दिव्यांग खिलाड़ियों को एक सहयोगी अपने साथ रखना पड़ता है। ऐसे में आने-जाने का खर्च डबल हो जाता है। शुरुआत में मैंने खुद अपने पैसे खर्च करके कोलंबिया, दुबई और ट्यूनिशिया में खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। ऐसा नहीं करता तो आज मुझे कोई नहीं जानता। अभी सरकार दिव्यांग खिलाड़ियों की मदद कर रही है लेकिन इसे और बढ़ाना चाहिए, ताकि स्कूल, कॉलेज में पढ़ने वाले दिव्यांग भी खेलों में आगे आएं।

(नजफगढ़ के पैरा एथलीट विकास डागर 2013 से लांग जंप और एक सौ मीटर की दौड़ में 22 इंटरनैशनल और 12 नैशनल मेडल जीत चुके हैं। 2014 व 2018 के एशियन गेम्स में अपना जलवा दिखा चुके डागर दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा स्टेट स्पोर्ट्स अवार्ड भी जीत चुके हैं। इन दिनों वे साउथ एमसीडी के एक स्कूल में नौकरी करते हैं और नजफगढ़ के ककरौला स्थित स्टेडियम में दिव्यांग बच्चों को ट्रेनिंग दे रहे हैं।)



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