Monday, August 9, 2021

वर्ल्ड कप विजेता क्रिकेटर कर रहा है मजदूरी, उठा रहा है ईंटें और रेत August 09, 2021 at 05:55PM

अहमदाबाद वर्ल्ड कप जीतना किसी भी क्रिकेटर के लिए बहुत बड़ा लम्हा होता है। यह उनके करियर की सबसे उपलब्धि मानी जाती है और वह वर्षों तक इसका जश्न मनाते हैं। लेकिन के लिए कहानी थोड़ी अलग है। वह 2018 में दृष्टि-बाधित वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थे। उनकी टीम ने शारजाह में हुए फाइनल में पाकिस्तान को हराया था। लेकिन अब उनके लिए अपना गुजारा चलाना भी मुश्किल हो रहा है। अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए वह मजदूर के तौर पर काम कर रहे हैं। नरेश ने पांच साल की उम्र में खेलना शुरू किया। उन्हें एक प्रतिभाशाली क्रिकेटर माना जाता था। अपनी प्रतिभा और मेहनत के दम पर साल 2014 में उन्होंने गुजरात की टीम में जगह बनाई। जल्द ही उन्हें राष्ट्रीय टीम में चुन लिया गया। लेकिन अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर छाई अनिश्चिताओं के चलते वह अपना खर्च चलाने के लिए मजदूर के तौर पर काम कर रहे हैं। अपनी समस्याओं का हल निकालने के लिए तुम्दा ने कई सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन दिया लेकिन उन्हें वहां से कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने सरकार से मदद लगाई। उन्होंने कहा, 'मैं रोजाना 250 रुपये तक कमाता हूं। मैं सरकार से अनुरोध करता हूं कि मुझे कोई नौकरी दे ताकि मैं अपना जीवनयापन कर सकूं।' नरेश पर परिवार के पांच लोगों की जिम्मेदारी है। वह अपने घर में अकेले कमाने वाले हैं। उनका कहना है कि सब्जी बेचकर जो पैसे आते हैं वह परिवार का खर्च चलाने के लिए काफी नहीं हैं। इस वजह से उन्होंने मजदूरी करने का फैसला किया। वह अब ईंटें उठाते हैं। 29 साल के नरेश को अपने बूढ़े माता-पिता की भी देखभाल करनी होती है और उन्हें कहीं से मदद नहीं मिल रही है। तुम्दा ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, 'जब भारतीय टीम वर्ल्ड कप जीतकर आई तो सरकार और कॉर्पोरेट ने उन पर धन वर्षा कर दी। क्या हम सिर्फ इसलिए कम खिलाड़ी हैं क्योंकि हम देख नहीं सकते? समाज को हमारे साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए।' तुमदा ने बीते साल अगस्त में सब्जियां बेचनी शुरू की थीं। लेकिन कोविड के चलते उनका काम नहीं चल पाया और उन्हें यह बंद करना पड़ा। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया था, 'मैं 20 मार्च 2018 को जीतने वाली टीम के प्लेइंग 11 का हिस्सा था। पाकिस्तान ने इस मैच में 308 रन का लक्ष्य दिया था। और हमने इसे हासिल कर लिया था। अब मैं घर चलाने के लिए ईंटे और रेत उठाता हूं।' उन्होंने यह भी कहा था कि जब भारतीय ब्लाइंड टीम ने वर्ल्ड कप जीता था तो दिल्ली और गांधीनगर के कई मंत्रियों ने उन्हें नौकरी देने का वायदा किया था लेकिन इसे पूरा नहीं किया गया।

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