Sunday, August 1, 2021

आत्महत्या से 10-15 मिनट दूर थीं रावेन सॉन्डर्स...ओलिंपिक में जीता सिल्वर मेडल August 01, 2021 at 12:58AM

नई दिल्ली खिलाड़ी अक्सर अपने लुक्स के चलते चर्चा में रहते हैं। खासतौर पर अगर फुटबॉल की बात करें तो अक्सर आपको अलग-अलग तरह की हेयर स्टाइल और टैटू वगैरह देखने को मिलेगा। में भी एक खिलाड़ी चर्चा का विषय बनी हुई हैं। अमेरिका की ये खिलाड़ी जैसे ही मैदान पर दिखीं वैसे ही सोशल मीडिया पर छा गईं। ऐसा नहीं था कि ये अपने लुक्स के कारण हीं चर्चा में थीं। मैदान पर भी उन्होंने जलवा दिखाया। सिल्वर मेडल जीताइस खिलाड़ी का नाम है। अमेरिका की रावेन सॉन्डर्स। रविवार को महिला शॉट पुट इवेंट का सिल्वर मेडल जीता। लेकिन इससे पहले ही ये अपने लुक को लेकर चर्चा का विषय बन गईं। पीले और बैगनी बाल और अलग तरह का मास्क पहने इस खिलाड़ी को हल्क (HULK) भी कहते हैं। रावेन सॉन्डर्स का ये पहला ओलंपिक मेडल है। ये तो रही उनके लुक्स और मेडल की। लेकिन इसके पीछे की कहानी उतनी ही भावुक कर देने वाली है। 5वें पायदान पर रहीं थीं सॉन्डर्सवह रियो में पांचवें स्थान पर रही थी और अपने शहर चार्ल्सटाउन के निवासियों को इतना गर्व था कि मेयर ने 17 अगस्त 2016 को रेवेन सॉन्डर्स दिवस के रूप में घोषित किया और परेड ग्राउंड में स्वागत किया था। लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था उनकी जिंदगी में तब सॉन्डर्स को जिंदगी से आसान मौत लगने लगी थी और वो आत्महत्या के बारे में सोच रहीं थीं। सभी रास्ते बंद नजर आने लगेसॉन्डर्स ने डब्ल्यूएमसी एक्शन न्यूज से बात करते हुए बताया कि पैसे की तंगी थी और स्कूली जीवन आसान नहीं था। चोटों का ढेर लग रहा था और प्रदर्शन गड़बड़ा रहा था। वो कहती हैं, 'मैं छोटी थी, मैं काली था और मैं समलैंगिक थी। फिर वो मिसिसिप्पी चले गए। उनके इर्द गिर्द बहुत सारी बातें चलती रहती थीं जिससे वो दूर होना चाहती थीं। इसके बाद उनको सारे रास्ते बंद नजर आने लगे। सुसाइड करने वालीं थीं एथलीटउस जनवरी की सुबह वह कैंपस जाने के लिए ड्राइव करने वाली थी। उन्होंने द पोस्ट एंड कूरियर से बताया कि मुझे पता था कि मुझे कहीं होना है, लेकिन मैं बस पिछले परिसर में लुढ़क गया और ड्राइविंग और ड्राइविंग करती रही। वो दिमागी रूप से काफी ज्यादा परेशान रहीं और फिर इस दौर को लेकर उन्होंने बताया कि वो सुसाइड करने में सिर्फ 10-15 मिनट ही दूर हैं। किसी को पता भी नहीं चलने दियासॉन्डर्स चाहती थीं कि कोई उनसे बातें करे और उनको समझाए कि ये सब क्या हो रहा है। उनको उस अवसाद से बाहर लेकर आए। इसके बाद उन्होंने डॉक्टर और थेरेपिस्ट से मदद ली। इसके बाद वो इससे जूझतीं रहीं और बाहर निकलीं। बाहर निकलने के बाद वापस उन्होंने नई शुरूआत की। उनके अवसाद के बारे में न उनके कोच जान पाए न ही उनकी मां।

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