Saturday, May 8, 2021

कुश्ती के ओलिंपिक मेडल हमारे ही होंगेः सोनम मलिक May 07, 2021 at 09:08PM

हॉकी के बाद रेसलिंग ही ऐसा खेल है जिसमें भारत ने ओलिंपिक में लगातार मेडल जीते हैं। इस बार भी भारत के छह पहलवानों ने ओलिंपिक के लिए क्वॉलिफाई कर लिया है। इनमें जिस पहलवान पर सबसे ज्यादा निगाहें रहेंगी वह हैं 62 किलोग्राम भारवर्ग में महिला पहलवान । सोनम ओलिंपिक में क्वॉलिफाई करने वाली देश की सबसे कम उम्र की महिला पहलवान हैं। ओलिंपिक को लेकर उनकी तैयारियों पर रौशान झा ने उनसे बात की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश : आपने ओलिंपिक मेडलिस्ट रेसलर साक्षी मलिक को हराकर जगह बनाई है। कितना मुश्किल था मुकाबला? साक्षी दीदी के साथ जब मैं पहली बार लड़ी थी, तब मैंने सीनियर लेवल पर लड़ना शुरू ही किया था। पहली भिड़ंत में मेरे ऊपर कोई प्रेशर नहीं था। वैसे भी वह ओलिंपिक मेडलिस्ट हैं। बहुत बड़ा नाम हैं। मुझे तब तक कोई जानता भी नहीं था। कोच सर ने और बाकियों ने यही कहा कि तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। इसलिए बेफिक्र होकर लड़ो। मैंने यही किया और जीत हासिल करने में सफल हो गई। आपने ओलिंपिक मेडलिस्ट साक्षी मलिक को तीन-तीन बार हराया है। क्या कहेंगी इन मुकाबलों के बारे में? सच कहूं तो पहले मुकाबले के बाद दूसरे मुकाबले में कोई प्रेशर था ही नहीं। लेकिन तीसरे मुकाबले में मैं कुछ प्रेशर में आ गई थी। ऐसा इसलिए कि इस मुकाबले से ओलिंपिक क्वॉलिफाइंग टूर्नामेंट में खेलने के लिए भारतीय टीम में जगह मिलती। मन में यही चल रहा था कि किसी भी तरह टीम में जगह बनाकर ओलिंपिक के लिए क्वॉलिफाई करना है। यही वजह है कि यह मुकाबला भी पहले से कुछ ज्यादा कठिन रहा, लेकिन मैं जीतने में सफल हो गई। वैसे सच बताऊं तो साक्षी दीदी के साथ तीनों ही मुकाबले बेहद कठिन रहे। लेकिन उनको हराने के बाद जो कॉन्फिडेंस मिला है, उससे ओलिंपिक में जरूर फायदा होगा। हारने के बाद साक्षी की प्रतिक्रिया कैसी थी? हारने के बाद तो ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। लेकिन जब मैंने ओलिंपिक के लिए क्वॉलिफाई कर लिया, तब उन्होंने जरूर मुझे बधाई दी। वैसे भी हम कैंप में एक साथ रहते हैं। वहां एक साथ उठना-बैठना और घूमना-फिरना होता है। वह मुझसे काफी सीनियर भी हैं और हम सभी उन्हें सम्मान देते हैं। साक्षी आपको प्रैक्टिस के दौरान टिप्स वगैरह देती हैं? हां देती हैं, लेकिन हम पूछते हैं तभी। हम सभी एक साथ प्रैक्टिस करते हैं। उस दौरान अगर हम कुछ पूछते हैं, तो वह बता देती हैं। आपने ओलिंपिक के लिए कोटा हासिल किया है। कई बार देखा जाता है कि आखिरी समय में भेज किसी और को दिया जाता है। इसे लेकर कभी मन में कोई शंका होती है? बिल्कुल भी नहीं। मुझे यह पता है और पहले ऐसा कुछ-कुछ खेलों में हुआ भी है। लेकिन मुझे फेडरेशन से कह दिया गया है कि ओलिंपिक में मैं ही जाऊंगी। वैसे भी मैं बताऊं तो रेसलिंग में कम से कम यह परंपरा रही है कि जिसने भी कोटा हासिल किया है, उसी को भेजा जाता है। इसलिए मैं इसको लेकर आशंकित नहीं हूं। अभी कोरोना की वजह से बड़े-बड़े टूर्नामेंट स्थगित हो गए हैं। ओलिंपिक पर भी खतरा मंडरा रहा है... डर तो बिल्कुल है। ओलिंपिक पिछले साल भी स्थगित कर दिया गया था। लेकिन इस बार स्थगित नहीं होगा, इस बात का पूरा विश्वास है। जहां तक भारत से फ्लाइट वगैरह कैंसिल कर देने की बात है, तो अभी ओलिंपिक में दो-ढाई महीने का समय है। उम्मीद है कि तब तक परिस्थितियां सही हो जाएंगी। अगर नहीं भी होती हैं तो सरकार जरूर कोई ना कोई रास्ता निकालेगी, जिससे हम तोक्यो तक पहुंच पाएं। हो सकता है कि हमें एक महीने पहले ही कहीं बायो बबल में रख दें और वहां से तोक्यो भेज दें। अगर ओलिंपिक होगा तो मुझे पूरा यकीन है कि हम भारतीय खिलाड़ी भी उसमें जरूर भाग लेंगे। अभी आपकी तैयारी कैसी चल रही है? अभी तो मैं चोटिल हूं। कजाकिस्तान के अल्माटी में ओलिंपिक क्वॉलिफाइंग टूर्नामेंट के दौरान मुझे चोट लग गई थी। इसलिए मैं उसके बाद हुए एशियन चैंपियनशिप में भी नहीं खेल पाई थी। मुझे फिलहाल रेस्ट के लिए कहा गया है। इसलिए मैं कैंप में भी नहीं हूं और घर पर ही अपने बचपन के कोच अजमेर मलिक सर की निगरानी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्पोर्ट संस्था, सोनीपत में थोड़ी-बहुत प्रैक्टिस कर रही हूं। सच बताऊं तो आज मैं जो कुछ भी हूं, अजमेर सर की वजह से ही हूं। अब तो लगभग सभी खिलाड़ियों ने क्वॉलिफाई कर लिया है। उनमें से कितनों को आप जानती हैं? अभी तक मेरे बाउट में चार पहलवानों ने क्वॉलिफाई किया है। दो को और करना है। जिन चार ने क्वॉलिफाई किया है उनमें से मैं सभी से लड़ चुकी हूं। इनमें दो को मैंने हराया भी है जबकि दो से हारी हूं। हालांकि जब मैं हारी थी तब छोटी थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सीनियर में इतना अनुभव भी नहीं था। लेकिन अब मुझे भी अनुभव मिल चुका है और उन्हें पटकने का माद्दा रखती हूं। वैसे अभी मैं खाली समय में उन सभी की विडियो देखती रहती हूं। उनकी कमजोरी और मजबूती को परख रही हूं। इससे काफी फायदा होगा और मैं जरूर उन्हें हराकर देश को मेडल दिलाऊंगी। हॉकी के बाद रेसलिंग ही ऐसा खेल हैं जिसमें भारत को लगातार मेडल मिले हैं। क्या इस बार भी वह परंपरा जारी रहेगी? बिल्कुल रहेगी। हमारी रेसलिंग टीम कितनी मजबूत है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि पहले हमें आखिरी क्वॉलिफाइंग टूर्नामेंटों में जाकर कोटा हासिल होता था। इस बार बजरंग हैं, विनेश हैं या फिर रवि दहिया और दीपक पूनिया हैं। इन सभी ने काफी पहले आसानी से कोटा हासिल किया है। मेरी साथी अंशु ने भी शानदार तरीके से कोटा हासिल किया। पिछले कुछ टूर्नामेंटों में उसका प्रदर्शन लाजवाब रहा है। ऐसे में सवाल ही नहीं उठता कि हमें इस बार भी मेडल नहीं मिले। बल्कि मैं तो कहती हूं कि इस बार रेसलिंग में सबसे ज्यादा मेडल मिलेंगे।

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