Sunday, May 10, 2020

लॉकडाउन: ऐथलीट के परिवार में नहीं बची रोटी, NGO पर निर्भर May 10, 2020 at 07:25PM

नागपुर कोविड- 19 (Covid- 19) के चलते देश भर में जारी लॉकडाउन (Lockdown) स्टीपलचेज रनर और उनके परिवार के लिए बेहद चुनौतिपूर्ण बन गया है। बीते 49 दिनों से ज्योति अपने परिवार के साथ नागपुर के पंचशील नगर की झुग्गी बस्ती में बंद हैं और इस 25 वर्षीय धावक की तमाम सेविंग्स अब खत्म हो चुकी है और पूरा परिवार एनजीओ द्वारा बांटे जाने वाले भोजन पर निर्भर है। ज्योति ने हमारे सहयोगी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' को बताया, 'दो-तीन दिन में एक बार कुछ लोग हमारी कॉलोनी में खाना बांटने आते हैं। हमारे पास बीपीएल कार्ड भी नहीं, जिसके चलते हमें राशन बाजार भाव पर ही खरीदना पड़ता है और अब घर में राशन मुट्ठीभर ही बचा है।' ज्योति ने कहा, 'लॉकडाउन की शुरुआत में मैंने भी सरकार के इस फैसले की तारीफ की थी क्योंकि कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए सरकार ने इसे शुरू किया था। लेकिन अब चीजें मुश्किल होती जा रही हैं। अगर यह लॉकडाउन और बढ़ा तो हमें लोन लेना होगा, जिसे मैं बाद में नकद इनाम जीतकर लौटाऊंगी।' साल 2015 में हैदराबाद में हुई हाफ मैराथन रेस में 40 हजार रुपये जीतने वाली ज्योति को लगा कि ऐथलेटिक्स आय के स्रोत के रूप में चुना जा सकता है- जैसे अफ्रीकी देशों के खिलाड़ी करते हैं। ज्योति के पिता के बेरोजगार होने के बाद ज्योति और उनकी बहन (जो नर्स हैं) उन्होंने परिवार चलाने की जिम्मेदारी संभाली। अपनी बहन की बचत से उन्होंने अपने झुग्गी वाले घर को पक्के घर में तब्दील किया। यह साल 2008 की बात थी, जब ज्योति के स्पोर्ट्स टीचर गजानन शिवाडकर ने बालाजी हाई स्कूल में दौड़ में भाग लेने का मौका दिया। तब से उसे रनिंग की अडवांस ट्रेनिंग मिलने लगी। इसके बाद गुजरात जूनियर नैशनल में ज्योति ने अपना पहला गोल्ड मेडल जीता और अब तक उसके पास कुल 20 पदक हैं। कोविड- 19 के चलते शुरू हुए लॉकडाउन से पहले ज्योति अपनी ट्रेनिंग के लिए भोपाल में थीं। लेकिन 20 मार्च को सभी ऐथलीट्स को अपने-अपने घर वापस जाने के लिए कह दिया गया।

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