Monday, August 2, 2021

'कुपोषित थी, हॉकी स्टिक भी नहीं खरीद सकती थी, पापा गाड़ी चलाते और मां नौकरानी'...रानी रामपाल की ये दास्तां नम कर देगी आंखें August 02, 2021 at 04:29AM

नई दिल्ली 'मैं अपने जीवन से भागना चाहती थी। बिजली सारा-सार दिन आती नहीं थी, कानों पर मच्छर भिनभिनाते रहते थे और बमुश्किल दो वक्त की रोटी मिलती थी। बारिश होती थी तो घरों पर पूरा पानी भर जाता था। मेरे पिता जी ने पूरी कोशिश कि हम लोगों को अच्छे से जीवन बिताएं लेकिन वो इतना ही कर सकते थे क्योंकि वो एक गाड़ी चलात थे और मां नौकरानी की तरह काम किया करती थी।' हॉकी स्टिक नहीं खरीद सकते थे पिता जी'मेरे घर के पास एक हॉकी अकादमी थी, इसलिए मैं घंटों खिलाड़ियों को अभ्यास करते हुए देखती थी। मैं भी वास्तव में खेलना चाहती थी। पापा प्रतिदिन 80 रुपये कमाते थे और मेरे लिए एक हॉकी स्टिक नहीं खरीद सकते थे। हर दिन मैं कोच के पास जाती थी और मुझे भी सिखाने के लिए कहती थी। कोच ने मुझे रिजेक्ट कर दिया क्योंकि मैं कुपोषित थी। वह कहते थे, 'आप अभ्यास सत्र के लिए पर्याप्त मजबूत नहीं हैं।'... आप सोच रहें होंगे कि ये किसकी बात यहां हो रही है। जी हां ये बात हो रही भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल की। रानी रामपाल ने अपने उस दौर की बातें बताईं जब मुफलिसी के कारण उनका जीवन मुश्किलों से गुजर रहा था। टूटी स्टिक से शुरू हुआ सफररानी रामपाल आगे कहती हैं, 'इसके बाद मुझे मैदान पर एक टूटी हुई हॉकी स्टिक मिली और उसी के साथ अभ्यास करना शुरू किया। मेरे पास ट्रेनिंग के कपड़े नहीं थे, इसलिए मैं सलवार कमीज में इधर-उधर भागा करती थी। लेकिन मैंने खुद को साबित करने की ठान ली थी। मैंने कोच से मौका मांगा और बहुत मुश्किल से आखिरकार उनको तैयार किया।' घर वालों ने मना किया लेकिन जब मैंने अपने परिवार को बताया, तो उन्होंने कहा कि लड़कियां घर का काम ही करती हैं और हम तुम्हें स्कर्ट पहनने नहीं देंगे।' मैनें उनसे कहा कि प्लीज मुझे जाने दो। अगर मैं असफल होता हूं, तो आप जो चाहेंगे, मैं करूंगा।’ मेरे परिवार ने बिना मन से मेरी बात मान ली। प्रशिक्षण सुबह से शुरू होगा। हमारे पास घड़ी भी नहीं थी, इसलिए मां उठती थीं और आसमान की ओर देखतीं कि क्या यह मुझे जगाने का सही समय है। दूध में पानी मिलाकर पीती थीअकादमी में प्रत्येक खिलाड़ी के लिए 500 मिलीलीटर दूध लाना अनिवार्य था। मेरा परिवार केवल 200 मिली का दूध ही खरीद सकता था। बिना किसी को बताए मैं दूध में पानी मिलाकर पी लेती थी क्योंकि मैं खेलना चाहती थी। मेरे कोच ने मोटे और पतले के माध्यम से मेरा समर्थन किया। उन्होंने मुझे हॉकी किट और जूते खरीद कर दिए। उन्होंने मुझे अपने परिवार के साथ रहने दिया और मेरी डाइट संबंधी जरूरतों का भी ध्यान रखा। मैं कड़ी मेहनत करती और अभ्यास का एक भी दिन नहीं छोड़ती थी। 15 साल में पहली बार नेशनल का मौकाअपने राज्य का प्रतिनिधित्व करने और कई चैंपियनशिप में खेलने के बाद, मुझे आखिरकार 15 साल की उम्र में एक राष्ट्रीय मौका मिला। फिर भी मेरे रिश्तेदार मुझसे केवल शादी की बात किया करते थे। लेकिन पापा ने मुझसे कहा अपने दिल की खुशी तक खेलो।' अपने परिवार के समर्थन से मैंने भारत के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने पर ध्यान केंद्रित किया और आखिरकार मैं भारतीय हॉकी टीम का कप्तान बन गई। रानी रामपाल ने साझा की आपबीतीये सब बातें भारतीय महिला हॉकी टीम की खिलाड़ी रानी रामपाल ने खुद सोशल मीडिया पर पोस्ट की और देश के साथ साझा की। हरियाणा में शाहाबाद की बेटी रानी रामपाल के संघर्ष की कहानी उनके पिता की मेहनत के साथ शुरू हुई थी। शाहाबाद कस्बा के माजरी मोहल्ले की रानी के पिता तांगा चलाया करते थे और अक्सर महिला हॉकी खिलाड़ियों को आते-जाते देखते थे। बस यहीं से पिता के दिल में बेटी को खिलाड़ी बनाने की चाह जाग उठी और बेटी को हॉकी मैदान में उतारा। खेलने और पढ़ाई का शौकजहां से रानी की हॉकी की स्वर्णिम शुरुआत हुई। रामपाल बताते हैं कि दिक्कतें तो गरीबी में सबसे ज्यादा होती हैं। लेकिन रानी ने कभी कोई शिकायत नहीं की। वह अपनी पढ़ाई और खेल के प्रति समर्पित रहीं। रानी को शुरू से ही खेलने का और अपनी पढ़ाई का शौक रहा है। वह कभी टीवी नहीं देखती। अगर परिवार के लोग टीवी देख रहे होते हैं तो वह दूसरे कमरे में जाकर बैठ जाती थीं और पढ़ाई करतीं। 6 साल की उम्र में थामी हॉकीउन्होंने बताया कि रानी ने महज छह साल की उम्र में हॉकी पकड़ी थी। पांचवीं कक्षा में हॉकी कोच बलदेव सिंह के पास प्रशिक्षण लेना शुरू किया। 16 वर्ष की आयु में भारतीय टीम से खेलना शुरू किया। ये उनका दूसरा ओलिंपिक है और बतौर कप्तान खेल रही हैं। पिछली बार ओलिंपिक से लौटने के बाद हॉकी प्लेयर रानी रामपाल को अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया था। भारत सरकार की ओर से रानी रामपाल को खेल रत्न अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है।

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