Wednesday, October 6, 2021

ब्रेन ट्रॉमा, याददाश्त गई पर हौसला वही, जानलेवा एक्सीडेंट के बाद एक्सिलेटर दबाने को तैयार 'हीरो' October 06, 2021 at 05:30AM

नई दिल्लीइतना भयानक एक्सीडेंट कि जान जा सकती थी। चोट की वजह से ब्रेन ट्रॉमा और याददाश्त तक गई, पर हौसला नहीं हारे। मौत को मात देकर 10 महीने में न केवल पूरी तरह से फिट हुए, बल्कि एक बार फिर से एक्सिलेटर दबाने को तैयार हैं। यह स्टोरी है भारतीय मोटरसाइकल रेसर सीएस संतोष () की। उनका जनवरी में एक एक्सीडेंट हुआ था, जिससे उन्हें फिट होने में 10 महीने लग गए। कोमा में ही लौटे स्वदेशभारत के जाने माने रेसर संतोष () 6 जनवरी, 2021 को सऊदी अरब में डकार रैली के दौरान दुर्घटना का शिकार हो गए थे। एक्सीडेंट के बाद उन्हें दवा देकर कोमा की स्थिति में रखा गया और एयर एंबुलेंस में रियाद के अस्पताल में ले जाया गया। यहां वह 8 दिन तक रहे और कोमा की ही स्थिति में दुनिया की सबसे बड़ी रैलियों में से एक में हीरो मोटोस्पार्ट्स टीम का प्रतिनिधित्व करने वाले 37 साल के संतोष को बेंगलुरु लाया गया। यहां जब उन्हें होश आया तो डकार रैली के बारे में सबकुछ भूल चके थे। लगा सपना देख रहा हूं- गर्लफ्रेंड, माता-पिता क्या कर रहे मेरे साथसंतोष ने एक इंटरव्यू में 'हिंदुस्तान टाइम्स' से कहा, 'जब मैं (बेंगलुरु में) उठा तो मुझे लगा कि यह निश्चित रूप से एक सपना है। मैंने सोचा मेरी गर्लफ्रेंड यहां क्या कर रही है? मेरे माता-पिता यहां क्या कर रहे हैं? मैं भारत में क्या कर रहा हूं?' डकार रैली से उनकी कोई यादें नहीं थीं। उन्होंने सोचा कि वह अभी भी स्पेन में प्रशिक्षण ले रहे है, जहां उन्होंने रैली में जाने से पहले छह महीने बिताए थे। यह पता लगाने में उलझन में था कि वह भारत में हैं। 2015 में डकार को पूरा करने और पूरा करने वाले पहले भारतीय ने कहा, 'मुझे अहसास भी नहीं हुआ कि मैं दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। मुझे यह महसूस करने में करीब एक महीने का समय लगा कि यह एक सपना नहीं था कि मैं वास्तव में अपने जीवन में कुछ कर रहा था।' फिर शुरू हुआ कमबैक का सफर फिर शुरू हुआ रिकवरी का लंबा सफर। सार्वजनिक या सामाजिक गतिविधियों से हटकर संतोष ने अपने परिवार के साथ समय बिताया। उन्होंने अपनी यादों ताजा करने की कोशिश की। अतीत की तस्वीरों और वीडियो को देखा, चेहरों पर नाम डाले, घटनाओं और अवसरों के बारे में फिर से सीखा। वह कहते हैं- मैं 2015 डकार के बारे में सबसे ज्यादा भावुक था। इसलिए मुझे इसके बारे में बहुत कुछ याद है। मुझे याद है कि मैं इसे करने वाला पहला भारतीय था, उस वर्ष मैं जिन कठिनाइयों से गुजरा, मुझे वह विस्तार से याद है। इस तरह लगातार करते रहे कोशिश शारीरिक रिकवरी भी मुश्किल हो गई थी। ब्रेन ट्रामा, कोमा और बिस्तर में बिताए सप्ताहों के दौरान रेसिंग कौशल भी चुनौतीपूर्ण हो गए थे। अप्रैल में महामारी की दूसरी लहर के कारण लॉकडाउन लागू होने से ठीक पहले संतोष को बोलोग्ना के एक स्पोर्ट्स मेडिसिन सेंटर में रिहैब के लिए इटली स्थानांतरित कर दिया गया था। वह बताते हैं, 'दिन में पांच घंटे रिहैब ... महीनों तक मैंने बस इतना ही किया। एक बच्चे की तरह, मुझे सिखाया जाना था कि गेंद को कैसे पकड़ना है, अपने हाथों, पैरों को कैसे समन्वयित करना है, उन्हें एक साथ काम करना है ताकि आप छोटे कार्यों को प्राप्त कर सकें ... मैं वह नहीं कर सका, चाहे जो भी कार्य हो; किसी चीज के लिए पकड़ना या पहुंचना। मैं खुद पर हंस रहा था क्योंकि मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं सबसे बेवकूफी भरी एक्सरसाइज नहीं कर सकता।' कहते हैं ना कोशिश करने वालों की हार नहीं होती... कुछ ऐसा ही हुआ संतोष के साथ। उनकी कोशिशों ने रंग जमाया और जुलाई में उन्होंने साइकिलिंग शुरू की। अगस्त में स्थिति बेहतर होने लगी। इस बारे में वह कहते हैं, 'एक चीज जो मैं नहीं भूला था, वह यह थी कि मोटरसाइकिल। वह ऐसा लग रहा था जैसे सबकुछ कल की ही बात हो।' उन्हें उम्मीद है कि अगले डकार रैली में वह हिस्सा लेंगे। कुछ ही समय में वह बाइक राइडिंग फिर से शुरू करेंगे। उन्होंने कहा, 'यह जीवन में एकमात्र प्रेरणा है। धीरे-धीरे कुछ हफ्तों में मोटरसाइकिल पर अभ्यास करना शुरू करना है।' उल्लेखनीय है कि 7 बार डकार रैली में हिस्सा ले चुके संतोष को चौथे चरण के लगभग 135 किमी के दौरान दुर्घटना का सामना करना पड़ा था। संतोष को 2013 में अबू धाबी डेजर्ट चैलेंज में भी दुर्घटना का सामना करना पड़ा था जब उनकी सुजूकी एमएक्स450एक्स में लाग लगने से उनके गले के आसपास का हिस्सा जल गया था।

No comments:

Post a Comment