Monday, December 30, 2019

साल 2019: पेसर्स के 'पंच' ने भारतीय टीम को बनाया दमदार December 30, 2019 at 08:59PM

पार्थ भादुड़ी, नई दिल्ली भारतीय क्रिकेट टीम के लिए साल 2019 बहुत शानदार रहा। बेशक, हर चीज टीम इंडिया के पक्ष में नहीं गई- किसी के भी नहीं जाती- लेकिन 2019 कुल मिलाकर टेस्ट के मंच पर भारत के प्रभुत्व का साल रहा। टीम ने घरेलू मैदान पर रेकॉर्ड लगातार चार बार पारी के अंतर से जीत हासिल की। यह इतना सामान्य लगने लगा था कि कई बार दर्शकों को भी अजीब लगने लगता। भारत ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीतने वाला पहला एशियाई देश बना। टीम का जीत का औसत 87.5 रहा और उसने एक भी टेस्ट मैच नहीं हारा। इसके बाद अगले नंबर पर ऑस्ट्रेलिया रही जिसने 66.6 प्रतिशत मैच जीते। भारतीय क्रिकेट टीम के प्रदर्शन में जो निरंतरता नजर आ रही है वह किसी भी खेल टीम का एक सपना हो सकती है। इस कामयाबी ने आईसीसी टेस्ट चैंपियनशिप में भारत को एक मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया है। टीम इंडिया इसमें टॉप पर है। गौरतलब है कि कप्तान खुद भी टेस्ट चैंपियनशिप को काफी पसंद करते हैं। पूरे दशक में सभी प्रारूपों में भारत की जीत का औसत 60.82 रहा। टीम ने 462 में से 281 मैच जीते। टीम की कामयाबी का बड़ा श्रेय तेज गेंदबाजों को जाता है। इस साल की कामयाबी बीते पांच साल से बोलिंग यूनिट को नए सिरे से तैयार करने की कोशिश का परिणाम है। इस साल में टेस्ट टीम के चरित्र के एक प्रगति देखी गई। इसकी शुरुआत दशक के मध्य में विराट कोहली द्वारा टेस्ट टीम की कमान संभालने के बाद से हुई थी। टीम इंडिया जो पहले मैच बचाने, सीमित हथियार और शायद नए विचारों की कमी से जूझती नजर आती थी, को धीरे-धीरे बोल्ड फैसले लेने और नतीजे की ओर जाने वाली टीम में बदलती चली गई। एक हैरानी की बात यह रही कि ऐसा नहीं कि पूरी टीम बदल गई हो सिवाय एक केक आने से- लेकिन उन्होंने ही बीते दशक के आखिरी दो साल में भारतीय टीम का रूप बदलने में महती भूमिका निभाई। जनवरी 2018- जब बुमराह ने अपने डेब्यू किया के बाद भारतीय पेसर्स ने 22 टेस्ट मैचों में 20.74 के औसत से 274 विकेट लिए हैं। एक पारी में सबसे ज्यादा बार पांच विकेट (14) भी टीम इंडिया की पेस बैटरी ने ही झटके हैं। इसके बाद दूसरे नंबर पर ऑस्ट्रेलिया (11) है। जबसे बुमराह ने डेब्यू किया उनका स्ट्राइक रेट (30.4), औसत (13.19), इकॉनमी (2.59) सभी गेंदबाजों से बेहतर रहा है। उनके नाम सबसे ज्यादा टी20 इंटरनैशनल विकेट (42 मैचों में 51) और सर्वश्रेष्ठ इकॉनमी (6.71), वनडे में भी उनका बेस्ट ऐवरेज (21.88) और इकॉनमी (4.49) भी अपने डेब्यू के बाद सभी से बेहतर रही है। दशक का अंत आते-आते बुमराह ने भारतीय क्रिकेट को बदल दिया। वह अलग हैं, उनके पास वैरायटी है और समय के आगे की क्रिकेटीय सोच है। और इन सबको बैक करने के लिए उनके पास जबर्दस्त पेस है। लेकिन जैसाकि उनके करियर की शुरुआत में ही अंदेशा जताया गया था कि उनका यूनीक ऐक्शन ही उनके लिए परेशानी का सबब बन रहा है। टीम प्रबंधन को शायद बुमराह को काफी संभालकर इस्तेमाल करना होगा। एक अन्य तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी 2019 में दो प्रारूपों में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज रहे। अपने करियर में उन्होंने दूसरी बार ऐसा किया है। उन्होंने इस साल वर्ल्ड कप में अफगानिस्तान के खिलाफ हैटट्रिक ली। वह वर्ल्ड कप में हैटट्रिक लेने वाले भारत के दूसरे गेंदबाज बने। कोहली की कप्तानी में शमी काफी निखरकर आए हैं। उन्होंने 37 टेस्ट मैचों में 137 विकेट लिए हैं। उनका स्ट्राइक रेट 46.2 का रहा है। यह इस दौरान सभी तेज गेंदबाजों के मुकाबले सबसे अच्छा है। विदेशों में भी उन्होंने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और 25.87 के स्ट्राइक रेट से 86 विकेट लिए हैं। इस बीच अपने अनुभव का बखूबी इस्तेमाल किया है। वह टीम में अपनी भूमिका को अब बेहतर समझते हैं। ईशांत की ही तरह उमेश ने भी अपनी लैंथ और पेस पर काफी काम किया है। इन पेसर्स ने टीम इंडिया की बोलिंग अटैक के अगुआ रहे स्पिनर्स और काफी हद तक बल्लेबाजों से फोकस शिफ्ट किया है। 2019 में भारत में खेले गए पांच टेस्ट मैचों में भारतीय पेसर्स ने 59 विकेट लिए जबकि स्पिनर्स को 37 विकेट मिले। पेसर्स का औसत 15.25 का रहा और स्पिनर्स का 28.23 का। स्ट्राइक रेट का अंतर भी काफी हैरानी भरा रहा- स्पिनर्स को जहां हर 60.6 गेंद बाद विकेट मिला वहीं पेसर्स ने एक विकेट के लिए 30.3 गेंद खर्च कीं। बल्लेबाजी की बात करें तो ने हर प्रारूप में धमाल किया। मयंक अग्रवाल ने अपनी पहली टेस्ट सेंचुरी साउथ अफ्रीका के खिलाफ लगाई और बांग्लादेश के खिलाफ दोहरा शतक जड़ा। उनके खेल ने टीम इंडिया को एक लॉन्ग टर्म ओपनर की उम्मीद दी है। विराट कोहली- इस दशक में सभी प्रारूपों में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज रहे। वहीं टेस्ट में वह ऐलिस्टर कुक और जो रूट के बाद तीसरे नंबर पर रहे। वह तेंडुलकर के रेकॉर्ड के काफी करीब पहुंच गए हैं। आईसीसी टूर्नमेंट में हार-जीत के औसत के लिहाज से भी भारत के लिए साल काफी अच्छा रहा। हालांकि टीम तीन बार सेमीफाइनल और दो बार फाइनल में हारी। टीम को सिर्फ एक आईसीसी ट्रोफी- 2011 वर्ल्ड कप- ही इस दशक में मिली। इस साल मार्टिन गप्टिल के डायरेक्ट थ्रो ने महेंद्र सिंह धोनी की किस्मत को भी बदला। धोनी तेज भागे लेकिन क्रीज तक नहीं पहुंच पाए। और आखिर में निराश मन के साथ मैदान से बाहर गए। उसके बाद से वह क्रिकेट के मैदान पर नहीं दिखे हैं। क्या नहीं हुआ- टीम को वनडे इंटरनैशनल में कोई नंबर चार बल्लेबाज निश्चित रूप से अभी नहीं मिला। वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में जब, टीम को सबसे ज्यादा जरूरत थी, दुनिया के टॉप तीन बल्लेबाज प्रदर्शन नहीं कर पाए और इससे कोहली के निराशानजनक 30 मिनट की बात शुरू हुई। और लोढ़ा पैनल के बाद क्या होगा, इस पर अभी पूरी तरह तस्वीर साफ नहीं है। इन सवालों के जवाब भी अगल साल तलाशने होंगे।

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