Thursday, March 3, 2022

लड़ाकू एटिट्यूड और रन उगलता बल्ला... कैसे धोनी के साए में कोहली ने लिखी अपनी अलग परिभाषा March 03, 2022 at 12:40AM

नई दिल्ली: महान सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar), राहुल द्रविड़ (Rahul Dravid), वीरेंद्र सहवाग (Virender Sehwag), वीवीएस लक्ष्मण (VVS Laxman) और एमएस धोनी (MS Dhoni)... ये वे नाम हैं, जो एक दशक पहले तक भारतीय क्रिकेट की धुरी हुआ करते थे। उस वक्त इनके बिना टीम इंडिया की कल्पना करना भी बेइमानी थी। फैंस इस बात पर घंटों बहस करते आसानी से देखे सकते थे कि इन बड़े नामों की विरासत को भविष्य में कौन संभालेगा? यकीन मानिए उस समय शायद ही किसी के पास इसका सटीक जवाब रहा होगा। दिग्गजों के रिटायरमेंट के बाद आया (Virat Kohli) का दौर। यह खिलाड़ी अपने लड़ाकू एटिट्यूड और विपक्षी टीम के हौसले पस्त करने वाली ताबड़तोड़ बैटिंग से लोगों के दिलों पर कब राज करने लगा पता ही नहीं चला। फैंस को कोहली में न केवल सचिन तेंदुलकर की बैटिंग का रोमांच दिखा, बल्कि सौरभ गांगुली का आक्रामक तेवर भी नजर आया। कभी सचिन की कॉपी राइट रही कवर ड्राइव पर देखते ही देखते कोहली का कब्जा हो गया। पूरे सफर को देखेंगे तो पाएंगे कि गांगुली के बाद कोहली ही वह इकलौते खिलाड़ी हैं, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया को उसी के अंदाज में जवाब देना शुरू किया। बैटिंग से रन बरसाने के अलावा उनके तीखे तेवर ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और साउथ अफ्रीका जैसी क्रिकेट में प्रभुत्व रखने वाली टीमों को खटकने लगे। रिकी पोंटिंग से लेकर इयान चैपल तक को कोहली में बैड बॉय दिखाई देता था, लेकिन कोहली का खेल ही ऐसा है कि हर कोई अपने मुंह पर ताला जड़ने को मजबूर हुआ। महान बल्लेबाज विवियन रिचर्ड्स हालांकि इस बात से उस वक्त भी इत्तेफाक नहीं रखते थे। उन्होंने तब भी विराट कोहली की फील्ड पर आक्रामकता को आगे बढ़कर अपनाया था। उन्होंने कहा था कि मुझे उनके तेवर में जरा भी कमी नहीं दिखती। मैं तो उनकी बैटिंग को पसंद करता हूं और करूं भी क्यों नहीं.. वह मुझे मेरी याद जो दिलाते हैं। विराट कोहली खुद का आंकलन करना बखूबी जानते हैं। तभी तो 2014 के इंग्लैंड दौरे पर खराब प्रदर्शन के बाद जब उनपर टीम से बाहर होने का दबाव बढ़ा तो उन्होंने दोगुनी ऊर्जा के साथ वापसी की। इंग्लैंड, साउथ अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया हो या फिर वेस्टइंडीज... डेल स्टेन हों या मिशेल जॉनसन... कोहली आंखों में आंखें डालकर दहाड़ने लगे। शतक पर शतक ठोकते हुए उन्होंने बता दिया कि दुनिया को नया 'सचिन' मिल चुका है। लेकिन इसका अंदाज थोड़ा हटकर है, जो स्लेजिंग का जवाब स्लेजिंग से देता है और बैट लेकर मैदान पर उतरता है तो विपक्षी टीम की सजा दोगुनी कर देता है। तभी तो 2018 में जब भारत ऑस्ट्रेलिया दौर पर पहुंचा तो रिकॉर्ड, पिच और खिलाड़ियों से अधिक चर्चा स्लेजिंग पर हो रही थी। दरअसल, कंगारू चाहते थे कि मैदान पर स्लेजिंग नहीं हो, क्योंकि उन्हें पता था यह कोहली की टीम है, छेड़ेंगे तो छोड़ेगी नहीं। हुआ भी कुछ ऐसा ही टीम इंडिया ने यहां 2-1 से हराते हुए न केवल इतिहास रचा, बल्कि कंगारू टीम की हेकड़ी निकाल दी। दुनिया जान चुकी थी कि यह भारत का दौर है, कोहली का दौर है। उनके अंदर लड़ाकूपन तो कूट-कूटकर भरा है। उन्हें तोड़ना आसान नहीं। यह बात उन्होंने पिता के निधन के तुरंत बाद मैदान पर उतकर दिल्ली के लिए मैच बचाते हुए साबित कर दिया था। हां, यहां अगर माही और उनकी कप्तानी की चर्चा न हो तो कोहली का इतिहास अधूरा-सा लगेगा। दरअसल, धोनी वह कड़ी हैं, जो इस दिल्ली के लड़के को 'किंग' कोहली बनाते हैं। उन्होंने चीकू को जब भी जरूरत हुई तब सपोर्ट किया। वह कोहली के कैलिवर को जानते थे तभी तो वह हर कदम पर अपने चीकू का साथ देते रहे। कोहली को घंटों नेट प्रैक्टिस ने तोप बल्लेबाज तो माही के साए में सीखे गए ककहरे ने करिश्माई कप्तान बनाया। कुछ ऐसी भी चीजे हैं, जो कप्तान के तौर पर कोहली को धोनी से अलग करती हैं। फिटनेस और अनुशासन के अलावा आक्रामक तेवर और जुझारूपन। धोनी कूल माने जाते हैं, लेकिन उन्हीं की विरासत संभालने वाले विराट की छवि आक्रामक खिलाड़ी की है। मैदान पर खेल के अनुसार चेहरे के समय-समय पर बदलते भाव धोनी के बिल्कुल उलट बनाते हैं। धोनी इमोशनलेस माने जाते थे। मैच की स्थिति कैसी भी हो उनके चेहरे का भाव नहीं बदलता था। कोहली को एक और बात धोनी से अलग करती है वह हैं इमोशंस। तभी तो विवियन रिचर्ड्स कहते हैं कि भारत का मैच अगर चल रहा है तो उसके लिए स्कोरकार्ड देखने की जरूरत नहीं। आप विराट कोहली के चेहरे को देखकर मैच का रूख बता सकते हैं। यह बात सही भी है। कोहली खुलकर जिंदगी जीने में विश्वास रखते हैं। जश्न मनाने और उसे व्यक्त करने का उनका अपना विशेष तरीका है। यही तो बात है, जो उनके फैंस को पसंद आती है। कोहली ने 2014 के इंग्लैंड दौरे को लेकर एक बार कहा था कि जब मैं इंग्लैंड से लौटा तो मैं समझ चुका था कि इस फिटनेस और जज्बे से कुछ नहीं हासिल होगा। अगर विदेशी तेज तर्रार पिचों पर रन बरसाना है तो फिटनेस के लेवल पर उनसे एक कदम आगे रहना होगा। यही वजह है कि कोहली घंटों जिम बिताते हैं और भारतीय टीम में शामिल होने के लिए जरूरी यो-यो टेस्ट में बेस्ट स्कोर करते हैं। रोचक बात यह है कि कोहली कप्तान हों या नहीं, इसका उनके खेले और टीम के प्रति समर्पण पर कोई असर नहीं पड़ता। शुक्रवार को जब विराट कोहली श्रीलंका के खिलाफ मोहाली में अपना 100वां टेस्ट खेलने उतरेंगे तो फैंस चाहेंगे कि उनकी बैटिंग में गांगुली सा तेवर हो, धोनी सा सब्र हो, सचिन से बेहतर कवर ड्राइव और मौजूदा कोच राहुल द्रविड़ सी मैराथन पारी हो। जितना शानदार उनका अब तक का करियर रहा है उससे कहीं अधिक यादगार 100वां टेस्ट हो।

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