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नई दिल्ली अगस्त की 15 तारीख भारतीय इतिहास में बहुत मायने रखती है। लेकिन 1947 से 11 साल पहले भारतीय झंडा दुनिया के किसी दूसरे कोने में सबसे ऊंचा लहराया जा रहा था। जर्मनी में। साल 1936 के ओलिंपिंक में टीम के खिलाड़ियों के इर्द-गिर्द एक अलग ही रोमांच था। इसकी वजह थी बर्लिन के पैक स्टेडियम में उनका दमदार प्रदर्शन। फ्रांस को सेमीफाइनल में भारतीय हॉकी टीम का जादू का सामना करना पड़ा। खास तौर पर का, जिन्होंने टीम के 10 में से चार गोल किए। भारतीय टीम ने यूरोपीय पावरहाऊस को बुरी तरह शिकस्त दी। अब फाइनल में भारत का सामना मेजबान जर्मनी से था। तारीख थी 15 अगस्त। भारतीय कैंप में उत्साह का नहीं बल्कि डर और चिंता का माहौल था। इसकी वजह था एडोल्फ हिटलर। वह 40 हजार दर्शकों के साथ ओलिंपिक का फाइनल देखने आने वाला था। फाइनल मुकाबले के दिन मेजर ध्यानचंद ने एक बार फिर जादुई खेल दिखाया और भारत ने हॉकी में लगातार तीसरा ओलिंपिक गोल्ड जीता। भारतीय हॉकी टीम के पू्र्व कोच सैयद अली सिबतैन नकवी ने बताया, 'यह दादा ध्यानचंद थे, जिन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाता था। उन्होंने 1936 के ओलिंपिक फाइनल में 6 गोल किए और भारत ने मैच 8-1 से जीता। ने दादा को सैल्यू किया और उन्हें जर्मन सेना जॉइन करने का ऑफर दिया।' नकवी ने बताया, 'पुरस्कार वितरण के मौके पर दादा कुछ नहीं बोले और पूरा स्टेडियम भी पूरी तरह शांत था। सभी को इस बात का डर था कि अगर ध्यानचंद ने ऑफर ठुकरा दिया तो तानाशाह उन्हें गोली मार सकता है। दादा ने मुझे बताया था कि उन्होंने हिटलर को जवाब बंद आंखों लेकिन भारतीय सैनिक की एक बुलंद आवाज में जवाब दिया था 'भारत बिकाऊ नहीं है।' सारा स्टेडियम तब हैरान रह गया जब हिटलर ने हाथ मिलाने के बजाय उन्हें सैल्यूट किया और कहा, 'जर्मन राष्ट्र आपको अपने देश भारत और राष्ट्रवाद के लिए सैल्यूट करता है। हिटलर ने ही उन्हें हॉकी का जादूगर का टाइटल दिया था। ऐसे खिलाड़ी सदियों में एक बार पैदा होते हैं।' आईएएनएस से इनपुट
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