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नई दिल्लीपहलवान रवि दहिया गुरुवार को स्वर्ण पदक जीतने से चूक गए। पुरुषों के 57 किग्रा भार वर्ग कुश्ती प्रतियोगिता के फाइनल में वह रूसी ओलिंपिक समिति के जावुर युवुगेव को पटखनी नहीं दे पाए। इस तरह उन्हें सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा। कुश्ती के दांव-पेचों से रवि ने समूचे देश का दिल जीत लिया है। प्रधानमंत्री से लेकर तमाम नामचीन हस्तियों ने रवि को उनकी उपलब्धि पर बधाई दी। इस बीच उनका गांव भी खूब चर्चा में है। लोग इसे 'असाधारण गांव' मानने लगे हैं, जिसकी मिट्टी में ही पहलवानी है। हरियाणा के सोनीपत में नाहरी गांव की आबादी करीब 15,000 है। यह अलग बात है कि गांव तीन 'धाकड़' ओलिंपियन दे चुका है। इनमें किसान पुत्र रवि दहिया तीसरे हैं। उनसे पहले और भी इसी गांव के थे। महावीर सिंह मॉस्को 1980 और लॉस एंजिल्स 1984 ओलिंपिक खेलों में कुश्ती टीम का हिस्सा थे। वहीं, अमित दहिया लंदन 2012 ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
कुश्ती के लिए गांव में दीवानगी एक के बाद एक ओलिंपियन निकलने के बाद इस गांव में कुश्ती के लिए भरपूर उत्साह है। माहौल भी। इन तीनों पहलवानों ने बहुत कम उम्र से कुश्ती शुरू कर दी थी। रवि दहिया के पिता राकेश दहिया बताते हैं कि छह साल की उम्र से रवि ने गांव के अखाड़े में कुश्ती शुरू कर दी थी। बाद में वह दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में चले गए थे। वह प्रत्येक दिन गांव से अपने बेटे के लिए दूध और मक्खन लेकर जाते थे ताकि उनके बेटे को पोषक आहार मिल सके। रवि दहिया का जन्म 1997 में हुआ था। जब वह दस साल के हुए तो सतपाल सिंह ने उत्तरी दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में ट्रेनिंग देनी शुरू की। रवि के छोटे भाई पंकज दहिया भी कुश्ती में ट्रेनिंग ले रहे हैं। रवि ने गांव के हंसराज ब्रह्मचारी अखाड़े में कुश्ती शुरू की। यहां हर बच्चा कुश्ती में हाथ आजमाता था। खून में है पहलवानी कुश्ती दहिया परिवार के खून में है। उनके पिता जवानी में कुश्ती करते थे। लेकिन, रवि अपने चाचा राजेश दहिया के डीलडौल से ज्यादा प्रभावित थे। वर्तमान में राजेश बीएसएफ राजस्थान में सहायक कमांडेंट पद पर कार्यरत हैं। नाहरी और नाहरा की दो पंचायतें पहलवानों की टकसाल के तौर पर प्रसिद्ध हैं, जैसा कि सोनीपत के लगभग हर गांव में है। गांव में दो अर्जुन पुरस्कार विजेता पहलवान सतवीर सिंह और महावीर सिंह और दो ओलिंपियन महावीर सिंह (1980 मॉस्को) और अमित कुमार दहिया (2012 लंदन) हैं। 18 साल की उम्र में अमित ने ओलिंपिक में भाग लेने वाले सबसे कम उम्र के भारतीय पहलवान होने का रिकॉर्ड बनाया था। 23 वर्षीय रवि यहां से नई खोज हैं। लेकिन, अब उनके पास ओलिंपिक पदक विजेता होने का एक अतिरिक्त गौरव है। क्यों खास है उपलब्धि? इससे पहले सुशील कुमार लंदन ओलिंपिक 2012 के फाइनल में पहुंचे थे, लेकिन उन्हें भी रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा था। रवि की जीत के साथ तोक्यो ओलिंपिक खेलों में भारत ने अपना दूसरा रजत पदक हासिल किया। इससे पहले भारोत्तोलक मीराबाई चानू ने महिलाओं के 49 किग्रा भार वर्ग में दूसरा स्थान हासिल किया था। भारत को कुश्ती में पदक दिलाने वाले पहले पहलवान खशाबा जाधव थे। उन्होंने हेलसिंकी ओलिंपिक 1952 में कांस्य पदक जीता था। उसके बाद सुशील ने बीजिंग में कांस्य और लंदन में रजत पदक हासिल किया था। सुशील ओलिंपिक में दो व्यक्तिगत स्पर्धा के पदक जीतने वाले अकेले भारतीय थे। अब बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू ने तोक्यो में कांस्य जीतकर इसकी बराबरी कर दी है। लंदन ओलिंपिक में योगेश्वर दत्त ने भी कांस्य पदक जीता था। वहीं, साक्षी मलिक ने रियो ओलिंपिक 2016 में कांसे का तमगा हासिल किया था। और कौन से खिताब अपने नाम कर चुके हैं रवि? रवि ने एशियन चैंपियनशिप (2020, 2021) में दो स्वर्ण, नूर सुल्तान में 2019 विश्व चैंपियनशिप में कांस्य, बुखारेस्ट में विश्व अंडर-23 चैंपियनशिप में रजत और साल्वाडोर दा बाहिया में 2015 विश्व जूनियर कुश्ती में रजत पदक जीता है।
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