नई दिल्ली सैफ अली खान को तो आप जानते ही हैं। मशहूर फिल्म ऐक्टर हैं। उनके पिता- नवाब मंसूर अली खान पटौदी को भी जानते ही होंगे। टाइगर पटौदी के नाम से भी जाने जाते थे। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रहे। इंग्लैंड में भारत और इंग्लैंड के बीच जो टेस्ट सीरीज होती है वह उनके नाम पर ही होती है। लेकिन आज बात करेंगे इफ्तिखार अली खान पटौदी यानी की। यानी सैफ के दादा और मंसूर अली खान के पिता की। आज उनकी सालगिरह है। आज ही के दिन साल 1910 में उनका जन्म हुआ था। वह अपने जमाने के मशहूर क्रिकेटर थे। ऐसे-ऐसे रेकॉर्ड बनाए जो लंबे वक्त तक कायम रहे। सबसे बड़ी बात यह है कि वह इकलौते क्रिकेटर हैं जिन्होंने दोनों के लिए टेस्ट क्रिकेट खेला। पटौदी सीनियर ने इंग्लैंड में यूनिवर्सिटी क्रिकेट में उन्होंने ऐसा रेकॉर्ड बनाया जो 74 साल तक नहीं टूटा। उन्होंने ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी की ओर से खेलते हुए कैम्ब्रिज के खिलाफ 1931 में 231 रन की पारी खेली। इस टूर्नमेंट में यह 2005 तक का रेकॉर्ड रहा। तब सलिल ऑबरॉय ने 247 रन बनाकर इसे तोड़ा। पटौदी सीनियर ने इंग्लैंड के लिए तीन टेस्ट मैच खेले। सिडनी में अपने डेब्यू टेस्ट में ही उन्होंने 102 रन की पारी खेली। यह 1932-33 की इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया सीरीज थी, जिसे क्रिकेट इतिहास में बॉडी लाइन सीरीज के नाम से जानते हैं। हालांकि सेंचुरी लगाने के बाद भी उन्हें अगले मैच से ड्रॉप कर दिया गया। वजह, वह इंग्लैंड के कप्तान डगलस जॉर्डलिन की गेंदबाजी रणनीति से सहमत नहीं थे। वह नहीं चाहते थे कि ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों के शरीर पर तेज गेंदबाजी की जाए। वह दौरा बीच में ही छोड़ वापस इंग्लैंड लौट गए और दो साल तक टीम से बाहर रहे। उनकी काउंटी वॉरसेस्टरशर ने भी उन्हें जगह नहीं दी। 1934 वह ऑस्ट्रेलिया के इंग्लैंड दौरे के दौरान फिर टीम का हिस्सा बने। यह इंग्लैंड के लिए उनके आखिरी मुकाबले थे। 1936 में पटौदी को भारत के इंग्लैंड दौरे से कई महीने पहले कप्तान बनाया था। इसके बाद आइडिया यह था कि वह खिलाड़ियों को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज से पहले खिलाड़ियों को देख लें और अपनी पसंद की टीम चुन लें लेकिन यह प्लान काम नहीं आया और फरवरी में उन्होंने यह कहकर नाम वापस ले लिया कि वह पूरी तरह फिट नहीं हैं। इसके बाद करीब 10 साल बाद वह इंग्लैंड दौरे पर जाने वाली भारतीय टीम के कप्तान बने। हालांकि यह फैसला इतना अच्छा नहीं था। पटौदी जब 36 साल के हो चुके थे। उनका प्राइम गुजर चुका था। इन बरसों में उन्होंने फर्स्ट क्लास क्रिकेट भी बहुत कम खेला था। उन्होंने दौरे पर करीब 1000 रन बनाए। इसमें नॉटिंगमशर और ससेक्स के खिलाफ सेंचुरिंयां भी शामिल थीं। लेकिन टेस्ट में उनका औसत सिर्फ 11 का था। भारत यह सीरीज 0-1 से हारा। खराब तबीयत के कारण उन्होंने जल्द ही संन्यास ले लिया। पांच साल बाद 5 जनवरी 1952 को पोलो खेलते हुए दिल्ली में हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। इसी दिन उनके बेटे मंसूर अली खान का जन्मदिन भी था। उन्होंने छह टेस्ट मैचों में 199 रन बनाए। इसमें 3 मैच इंग्लैंड के लिए खेले और 144 रनों का योगदान दिया। वहीं 127 फर्स्ट क्लास मैचों में उन्होंने 8750 रन बनाए और औसत रहा 48.61 का।
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