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नई दिल्लीअपने दौर के धुरंधर बल्लेबाज रहे सुनील गावस्कर की गिनती विश्व क्रिकेट के महानतम खिलाड़ियों में होती है। लिटिल मास्टर के नाम से विख्यात इस बल्लेबाज ने कई रिकॉर्ड्स अपने नाम किए। 70 और 80 के दशक में बिना हेलमेट के खतरनाक तेज गेंदबाजी झेली। संन्यास लेने के बाद उन्होंने बतौर कमेंटेटर अपनी दूसरी पारी शुरू की। अखबारों में कॉलम लिखा, टीवी प्रेजेंटेटर के रूप में अपनी विशेषज्ञ राय रखी, लेकिन कभी कोचिंग की ओर रुख नहीं किया। अब लंबे समय बाद उन्होंने एक यूट्यूब चैनल पर इसके कारणों का भी खुलासा किया है। सुनील की माने तो उनके पास वह समर्पण और एकाग्रता नहीं थी जो एक राष्ट्रीय कोच के भीतर होनी चाहिए। बकौल गावस्कर, 'मैं जब खेलता था तो क्रिकेट का एक भयानक दर्शक था। आउट होने के बाद बहुत रुक-रुक कर मैच देखता था। कुछ देर मैच देखने के बाद ड्रेसिंग रूम में जाकर कुछ पढ़ता फिर बाहर आकर मैच देखने लगता। मैं विश्वनाथ की तरह गेंद दर गेंद नहीं देख सकता और कोच की जॉब के लिए यह काफी अहम चीज होती है।' 2004 में जब भारतीय टीम की ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू सीरीज के दौरान उन्हें सलाहकार नियुक्त किया गया था, तब वह हेड कोच बनने के करीब आए थे। कोच न बनने के बावजूद उन्होंने भारतीय क्रिकेटर्स की हर संभव मदद की। अपने अनुभव से दूसरों की तकनीक में सुधार किया। सचिन तेंदुलकर से लेकर राहुल द्रविड़ और लक्ष्मण तक उनके पास आते और बेहिचक अपनी परेशानियां साझा करते।
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