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नई दिल्ली महेंद्र सिंह धोनी की छवि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फिनिशर्स की है। हालांकि उनकी हालिया फॉर्म बहुत अच्छी नहीं है। धोनी, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक आक्रामक बल्लेबाज के रूप में की, ने बाद में अपने खेल को बदला और सिंगल-डबल लेने पर भी ध्यान लगाया। टीम इंडिया के पूर्व बल्लेबाजी कोच संजय बांगड़ के पास इससे जुड़ा एक यादगार किस्सा है। आपको महेंद्र सिंह धोनी का शुरुआती करियर याद होगा जब उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ 148 और श्रीलंका के खिलाफ 183 रन की पारी खेली। इन पारियों में धोनी की बल्लेबाजी की आक्रामक शैली नजर आई। धोनी की पहचान एक आक्रामक बल्लेबाज की थी। जो गेंद पर जमकर प्रहार करता था और बड़े शॉट लगाता था। पूर्व कप्तान सौरभ गांगुली ने भी एक चैट शो में कहा था कि धोनी ने बाद में अपनी आक्रामक शैली में बदलाव किया लेकिन शुरुआत में वह बेहद ताकत से गेंद पर हमला करते थे। हालांकि कप्तान बनने के बाद धोनी ने अपनी बल्लेबाजी की रणनीति में बदलाव किया। वह शॉट सिलेक्शन को लेकर काफी सजग हो गए। इस पर बांगड़ ने एक रोचक कहानी बताई है। उन्होंने बताया कि धोनी ने अपनी नैसर्गिक आक्रामक शैली को दबाने का काम किया। बांगड़ ने बताया कि धोनी अपनी बल्लेबाजी के नोट्स लिखा करते थे। कागज पर नहीं बल्कि अपने थाई पैड पर लिखा करते थे। बांगड़ ने आईपीएल के आधिकारिक प्रसारणकर्ता स्टार स्पोर्टस् को बताया, 'मुझे हाल ही में पता चला कि कैसे अपने करियर की शुरुआती दिनों में जब धोनी इतने बड़े हिटर थे और आसानी से गेंद को मैदान के बाहर भेज सकते थे, ने अपने नैचरल खेल पर ब्रेक लगाई। वह अपने थाई पैड पर लिखा करते थे- 1,2- टिक टिक और 4, 6- क्रॉस, क्रॉस।' बांगड़ ने बताया, 'तो हर बार जब वह बल्लेबाजी करने जाते थे और अपना थाई पैड पहनते समय उनकी नजर उस पर पड़ती होगी। यह उन्हें उस प्रक्रिया के बारे में याद दिलाता होगा। और इस तरह एक और दो रन दौड़ते हुए वह इतने महान फिनिशर बने।' बांगड़ ने आईपीएल में धोनी की फॉर्म को लेकर भी अपनी राय रखी। इस आईपीएल में धोनी की बल्लेबाजी बहुत अच्छी नहीं रही है। उन्होंने 10 मैचों में सिर्फ 165 रन बनाए हैं। उनका सर्वोच्च स्कोर 47 रन का रहा है। सोमवार को राजस्थान रॉयल्स के खिलाफ वह 28 गेंद पर 28 रन ही बना सके। बांगड़ ने कहा, 'मैंने इस सीजन में अभी तक जो धोनी को देखा है तो मुझे लगता है कि उन्होंने गेंद खेलने से पहले की अपनी मूवमेंट बंद कर दी है। इस वजह से वह गेंद को देरी से खेल रहे हैं और जब 38-39 साल के हो जाते हैं, तो आपको उन गेंदबाजों को खेलने के लिए अधिक समय देना पड़ता है जो 140-145 की रफ्तार से गेंदबाजी कर रहे हों। अगर उन्हें जरा सा अधिक समय मिल जाए तो वह गेंद को दोबारा बल्ले के मिडल से खेलने लग जाएंगे।'
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