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नई दिल्ली (Major Dhyan Chand) का जन्म 29 अगस्त 1905 ( Birthday) को हुआ था। हॉकी के खेल में उन्होंने भारत को वह कामयाबी दिलाई जो एक मिसाल बन गई। गेंद उनकी हॉकी स्टिक से लगते ही करिश्मा करने लगती। तभी तो उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाता था। ध्यान चंद न सिर्फ हॉकी के खेल के महारथी थी बल्कि उनमें देशभक्ति भी कूट-कूटकर भरी हुई थी। तभी तो जर्मनी के तानाशाह ने भी ध्यान चंद को सैल्यूट करना पड़ा था। भारत सरकार हॉकी के इस जादूगर को सम्मानित करने के लिए आज के दिन को के रूप () में मनाती है। बात बर्लिन ओलिंपिक की है, साल 1936 और तारीख 15 अगस्त। यूं तो 15 अगस्त के भारत के इतिहास में बहुत खास मायने हैं लेकिन इसी तारीख को सन् 1947 से 11 साल पहले भारतीय झंडा दुनिया के किसी दूसरे कोने में सबसे ऊंचा लहराया जा रहा था। जर्मनी में। साल 1936 के ओलिंपिंक में भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ियों के इर्द-गिर्द एक अलग ही रोमांच था। इसकी वजह थी बर्लिन के पैक स्टेडियम में उनका दमदार प्रदर्शन। सेमीफाइनल में फ्रांस की टीम के खिलाफ भारत ने 10 गोल किए। चार अकेले ध्यान चंद ने। फ्रांस को यूरोपीय हॉकी का पावर हाउस माना जाता था। लेकिन भारतीय टीम के सामने वह पूरी तरह ध्वस्त हो गई। फाइनल में भारत का सामना मेजबान जर्मनी से था। तारीख थी 15 अगस्त, 1936। हालांकि फाइनल से पहले भारतीय कैंप में उत्साह का नहीं बल्कि डर और चिंता का माहौल था। इसकी वजह जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर था। हिटलर 40 हजार दर्शकों के साथ यह मैच देखने आने वाला था। फाइनल में एक बार फिर ध्यान चंद की हॉकी ने जादू बिखेरा। भारतीय टीम ने लगातार तीसरी बार हॉकी में ओलिंपिक गोल्ड जीता। भारतीय हॉकी टीम के पू्र्व कोच सैयद अली सिबतैन नकवी ने बताया था, 'यह दादा ध्यान चंद थे, जिन्होंने 1936 के ओलिंपिक फाइनल में 6 गोल किए और भारत ने मैच 8-1 से जीता। हिटलर ने दादा को सैल्यू किया और उन्हें जर्मन सेना जॉइन करने का ऑफर दिया।' नकवी ने बताया था, 'पुरस्कार वितरण के मौके पर दादा कुछ नहीं बोले। पूरे स्टेडियम में सन्नाटा था। सब इस बात को लेकर डर रहे थे कि अगर ध्यान चंद ने ऑफर ठुकरा दिया तो तानाशाह उन्हें गोली मार सकता है। दादा ने मुझे बताया था कि उन्होंने हिटलर को भारतीय सैनिक की तरह एक बुलंद आवाज में जवाब दिया था 'भारत बिकाऊ नहीं है।' स्टेडियम में मौजूद 40 हजार दर्शक उस समय हैरान रह गए जब हिटलर ने उनसे हाथ मिलाने के बजाय सैल्यूट किया। हिटलर ने ध्यान चंद से कहा, 'जर्मन राष्ट्र आपको अपने देश भारत और राष्ट्रवाद के लिए सैल्यूट करता है। हिटलर ने ही उन्हें हॉकी का जादूगर का टाइटल दिया था। ऐसे खिलाड़ी सदियों में एक बार पैदा होते हैं।'
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