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नई दिल्ली आज ही के दिन 1956 को भारत के सबसे शानदार बल्लेबाजों में शुमार दिलीप वेंगसरकर का जन्म () हुआ था। उनकी उम्र तब महज 19 साल थी जब पहली बार वह छा गए। उन्होंने ईरानी ट्रोफी मैच (Irani Trophy) में मुंबई (तब बॉम्बे) के लिए खेलते हुए शेष भारत के खिलाफ धमाकेदार 110 रन की पारी खेली। साल 1975 में नागपुर के मैदान पर हुए इस मैच में शेष भारत की टीम में बिशन सिंह बेदी (Bishan Singh Bedi) और इरापल्ली प्रसन्ना जैसे धाकड़ गेंदबाज थे। भारतीय स्पिन चौकड़ी के इन दो धुरंधरों के पास भी इस खिलाड़ी को रोकने का कोई तरीका नहीं था। यह पारी काम आई और वेंगसरकर को सीधा भारतीय टीम में जगह मिल गई। लेकिन भारतीय टीम में कामयाबी उन्हें जल्दी नहीं मिली। 1977-78 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर उन्होंने टीम में खुद को स्थापित किया और फिर अगले 15 साल तक भारतीय बल्लेबाजी क्रम का अहम हिस्सा बने रहे। लंबे कद के वेंगसरकर नैसर्गिक रूप से स्ट्रोक प्लेयर थे। लेकिन अपने दिन पर- जोकि अकसर ही होता- वह किसी भी गेंदबाजी आक्रमण की धज्जियां उड़ा सकते थे। वह कई साल तक नंबर तीन पर बल्लेबाजी करते रहे। और इस अहम पोजिशन पर उन्होंने भारत के लिए कई उपयोगी पारियां खेलीं। अपने 116 टेस्ट मैचों के करियर में वेंगसरकर ने 17 टेस्ट शतक लगाए लेकिन अब इसे अजीब संयोग ही कहा जाएगा कि इसमें सिर्फ चार में ही टीम को जीत मिली और वह भी 1986-87 के छह महीनों के दौरान। 1986 में हेडिंग्ले के मैदान पर उन्होंने कमाल की पारियां खेलीं। जब पूरे मैच में दोनों टीमों से कोई खिलाड़ी 36 का आंकड़ा पार नहीं कर पाया था तब उन्होंने 61 और 102 रनों बनाए थे। उन्हें लॉर्ड्स (Lord's) का 'बादशाह' भी कहते हैं। क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले इस मैदान पर उन्होंने लगातार तीन टेस्ट में तीन शतक लगाए थे। और ऐसा करने वाले वह पहले बल्लेबाज थे। 70 और 80 के दशक में वेंगसरकर भारत के चोटी के बल्लेबाजों में शामिल थे। 1986 से 1988 के बच उन्होंने 16 टेस्ट मैचों में 8 शतक लगाए। उनका ड्राइव कमाल का होता था और पुल और हुक खेलते हुए उन्हें कोई तकलीफ नहीं होती थी। ऐसे में गेंदबाज के लिए उन्हें बोलिंग करना मुश्किल होता था। सुनील गावसकर के साथ उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ कोलकाता में 1978-79 में 344 रनों की साझेदार की। 1989 में उन्होंने 10 टेस्ट मैचों में भारत की कप्तानी भी की लेकिन अमेरिका में कुछ फेस्टिवल मैच खेलने के चक्कर में उन्हें यह पद गंवाना पड़ा। इसके बाद वह टीम से बाहर भी हुए हालांकि उन्होंने संघर्ष किया और वापसी की। लेकिन वापसी के बाद उनमें वह रंग नजर नहीं आया। 1992 में जब उन्होंने संन्यास लिया तो शतक और टेस्ट रन के मामले में वह गावसकर के बाद दूसरे नंबर पर थे। चीफ सिलेक्टर बन कोहली को चुना था वेंगसकर भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य चयनकर्ता भी रहे। उन्होंने ही विराट कोहली को भारतीय टीम में चुना था। हालांकि इसके लिए उनकी बीसीसीआई के तब के अध्यक्ष एन. श्रीनिवास से बहस भी हुई थी लेकिन वेंगसरकर को कोहली पर पूरा यकीन था और यह सही भी साबित हुआ।
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