![](https://navbharattimes.indiatimes.com/photo/74942354/photo-74942354.jpg)
मुंबई दो अप्रैल 2011 का दिन भारतीय क्रिकेट में हमेशा याद किया जाएगा। मुंबई का वानखेडे़ मैदान। नुआन कुलासेकरा की गेंद। महेंद्र सिंह धोनी का वह सिक्स... और भारत वर्ल्ड चैंपियन। लगभग 28 साल बाद। खुशी के आंसुओं से नम थीं करोड़ों आंखें। उसमें शामिल थे क्रिकेट का भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंडुलकर। दस साल के सचिन ने जब कपिल देव को लॉर्ड्स की बालकनी में प्रूडेंशल कप थामे देखा था तभी तय कर लिया था कि अब क्रिकेटर ही बनना है। पहले उनके जेहन में क्रिकेट और टेनिस को लेकर दुविधा रहती थी पर उस लम्हे ने सचिन और उस पीढ़ी की दिशा बदल दी। अब साल बाद सचिन टीम के सबसे सीनियर खिलाड़ी थे। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 22 साल का सफर पूरा कर चुके थे सचिन। अपना छठा वर्ल्ड कप खेल रहे थे। और आखिरी भी। वर्ल्ड कप से पहले और दौरान भी कई क्रिकेटर कहते नजर आए कि यह विश्व कप सचिन पाजी के लिए जीतना है। सचिन टीम के लिए क्या थे, यह विराट कोहली के बयां से समझिए। आज टीम के कप्तान उस समय सबसे युवा खिलाड़ी थे। जीत के बाद टीम के खिलाड़ियों ने सचिन को कंधे पर बैठाकर पूरे मैदान का चक्कर लगाया था। इसके बाद कोहली ने कहा, 'सचिन तेंडुलकर ने भारतीय क्रिकेट को 21 साल तक अपने कंधे पर उठाया है। तो इस जीत के बाद उन्हें कंधे पर बैठाना तो बनता ही है।' कोहली का यह पहला सीनियर वर्ल्ड कप था। तीन साल पहले उन्होंने क्वालालंपुर में अंडर-19 वर्ल्ड कप जीता था।
No comments:
Post a Comment