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नई दिल्ली: देश का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण (Padma Bhushan Award) पाने वाले पहले पैरा खिलाड़ी बने देवेंद्र झझाड़िया () ने कहा है कि देश के हर दिव्यांग के लिए यह बहुत बड़ा दिन है और इससे समाज का दिव्यांगजनों के प्रति रवैया बदलेगा जबकि पैरा खिलाड़ियों (Para Atheltes) को और बेहतर प्रदर्शन करने की प्रेरणा मिलेगी। पैरालिंपिक (Paralympics) भाला फेंक एफ 46 वर्ग में में दो गोल्ड (एथेंस 2004 और रियो 2016) और एक रजत (तोक्यो 2020) पदक जीतने वाले झझाड़िया को मंगलवार को पद्मभूषण सम्मान के लिए चुना गया। इस वर्ष पद्मभूषण पाने वाले वह अकेले खिलाड़ी हैं। उन्हें 2012 में पद्मश्री मिला था। झझाड़िया ने गांधीनगर स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण केंद्र से भाषा को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘पैरा खेलों के लिए ही नहीं बल्कि सभी दिव्यांग लोगों के लिए भी यह बहुत बड़ा पल है। समाज में किसी समय में उनके लिए जो भावनाएं थीं, उसमें बदलाव आया है और आज वे सभी लोग बहुत खुश होंगे।’ उन्होंने कहा, ‘पहली बार एक पैरा खिलाड़ी को पद्मभूषण मिला है जिसके लिए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को धन्यवाद देना चाहूंगा। उन्होंने पैरा खेलों को एक विजन के रूप में लिया है और पैरा खिलाड़ियों की सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा है। इस साल खेल जगत से मुझे पद्मभूषण मिला है तो पूरे खेल जगत की तरफ से मैं उन्हें धन्यवाद देता हूं।’ झझाड़िया ने कहा कि इस सम्मान से पैरा खिलाड़ियों को आगे विश्व स्तर पर खासकर पैरालिंपिक में और बेहतर प्रदर्शन की प्रेरणा मिलेगी। राजस्थान के इस खिलाड़ी ने कहा, ‘इससे पैरा खेलों के लिए बहुत बड़ा बदलाव आएगा। तोक्यो की तरह पेरिस पैरालिंपिक में भी हमारा एक मिशन है और अब पहले से ज्यादा पदक जीतेंगे। इस साल एशियाई खेल हैं और हमारा पूरा फोकस पेरिस पैरालिंपिक पर भी हैं।’ भारतीय पैरा खिलाड़ियों ने तोक्यो पैरालिंपिक 2020 में पांच गोल्ड, आठ सिल्वर और छह कांस्य समेत 19 पदक जीते जो उनका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। तोक्यो ओलिंपिक गोल्ड मेडलिस्ट भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) और सुमित अंतिल (Sumit Antil) को भी पद्मश्री (Padma Shri) मिला है यानी भालाफेंक में तीन खिलाड़ियों को पद्म सम्मान के लिए चुना गया है। झझाड़िया ने कहा, ‘यह भालाफेंक के लिए बहुत बड़ी बात है। नीरज और सुमित को भी सम्मान मिला है और वे इसके हकदार थे। इससे युवा भालाफेंक खेल को अपनाने के लिए प्रेरित होंगे।’ आठ वर्ष की उम्र में पेड़ पर चढ़ते समय बिजली के तारों से टकराकर अपना बायां हाथ गंवाने वाले झझाड़िया ने पिछले दो दशक में पैरा खेलों में आए बदलाव का पूरा दौर देखा है। उन्होंने कहा, ‘शुरुआत में काफी चुनौतीपूर्ण था सफर। जब मैं मैदान पर पहली बार गया तो लोगों ने कहा कि एक दिव्यांग क्या खेलेगा? लेकिन आज देश कितना बदल गया है कि आज कोई दिव्यांग किसी को मिलता है तो लोग कहते हैं कि जाओ मैदान पर देवेंद्र झाझड़िया बनो। एक समय मैने अपनी जेब से पैसा लगाकर 2004 में पैरालिंपिक में पदक जीता क्योंकि सरकार से एक रुपया नहीं मिला था और आज सारी सुविधाएं हमारे पास हैं।’ उन्होंने अपना पद्मभूषण सम्मान अपने पिता को समर्पित किया जिनका अक्टूबर 2020 में निधन हो गया था। उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता का सपना था कि मैं बहुत बड़ा खिलाड़ी बनूं और उन्होंने काफी कुर्बानियां भी दीं लेकिन आज यह दिन देखने के लिए वह नहीं हैं। मैं यह सम्मान उन्हें समर्पित करता हूं।’ उन्होंने कहा, ‘यह खुशी मीडिया के साथ ही सेलिब्रेट कर रहा हूं चूंकि परिवार से दूर हूं। फोन पर सबसे पहले मम्मी को बताया तो वह काफी भावुक हो गई। हमारे परिवार के लिए बहुत बड़ा पल है। उन्होंने भी काफी चुनौतियों का सामना किया है और मुझे फख्र है कि आज उनका सिर गर्व से ऊंचा है।’
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