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नई दिल्लीबंगाल के सलामी बल्लेबाज अभिमन्यु ईश्वरन को लेकर चेतन शर्मा की अगुवाई वाली राष्ट्रीय चयनसमिति और टीम प्रबंधन (जिसमें कप्तान विराट कोहली भी शामिल हैं) के बीच संवाद टूटना भारतीय क्रिकेट में अपनी तरह का पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी ऐसे वाकये होते रहे हैं जब कप्तान को उनकी पसंद का खिलाड़ी नहीं मिल पाया और उनकी चयनकर्ताओं के साथ तनातनी हो गयी। साठ के दशक के आखिर और सत्तर के दशक के शुरू में बंगाल के विकेटकीपर हुआ करते थे ,पारसी समुदाय के रूसी जीजीभाइ, जिन्होंने 46 प्रथम श्रेणी मैच खेले थे और बल्लेबाजी में उनका औसत 10.46 था। भारत के 1971 के वेस्टइंडीज दौरे के लिए तीसरे विकेटकीपर का स्थान खाली था। अब निगाह दलीप ट्राफी मैच पर टिकी थी जिसमें पूर्वी क्षेत्र की अगुवाई रमेश सक्सेना कर रहे थे और दलजीत सिंह (बाद में बीसीसीआई के क्यूरेटर रहे) को विकेटकीपिंग करनी थी। इस मैच का हिस्सा रहे एक खिलाड़ी ने बताया, ‘चयन समिति के तत्कालीन अध्यक्ष विजय मर्चेंट (पारसी समुदाय के दिग्गज) ने टॉस से ठीक पहले रमेश भाई को बुलाया तथा दलजीत को बल्लेबाज और रूसी को विकेटकीपर के रूप में खिलाने को कहा। रमेश भाई उनकी बात नहीं टाल सके।’ जीजीभाई को वेस्टइंडीज दौरे के लिए चुना गया जो पहला और आखिरी दौरा साबित हुआ। उनका 46 मैचों में उच्चतम स्कोर 39 रन था। नए कप्तान अजित वाडेकर उनके चयन को लेकर मर्चेंट जैसे दिग्गज के साथ बहस नहीं करना चाहते थे। बंगाल के पूर्व कप्तान संबरन बनर्जी ने बताया कि 1979 में सुरिंदर खन्ना के साथ उनका इंग्लैंड दौरे पर जाना तय था लेकिन आखिर में तमिलनाडु के भरत रेड्डी को चुन लिया गया। तत्कालीन कप्तान एस वेंकटराघवन भी तमिलनाडु के थे। इसी तरह से कपिल देव ने 1986 के इंग्लैंड दौरे पर मनोज प्रभाकर की जगह मदन लाल को टीम में शामिल करवा दिया था जो तब इंग्लैंड में क्लब क्रिकेट खेल रहे थे। कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन और कोच संदीप पाटिल 1996 में सौरभ गांगुली को इंग्लैंड ले जाने के पक्ष में नहीं थे लेकिन संबरन बनर्जी तब चयनकर्ता थे और वह चयनसमिति के तत्कालीन अध्यक्ष गुंडप्पा विश्वनाथ और किशन रूंगटा को मनाने में सफल रहे थे। सहारा कप 1997 के दौरान कप्तान सचिन तेंडुलकर और टीम प्रबंधन मध्यप्रदेश के ऑलराउंडर जय प्रकाश (जेपी) यादव को टीम में चाहते थे लेकिन चयन समिति के संयोजक ज्योति वाजपेई ने अपने राज्य उत्तर प्रदेश के ज्योति प्रकाश (जेपी) यादव को भेज दिया। ज्योति को एक भी मैच खेलने का मौका नहीं मिला। इसी तरह से तेंडुलकर को 1997 के वेस्टइंडीज दौरे में अपनी पसंद का ऑफ स्पिनर नहीं मिला था। तब हैदराबाद के एक चयनकर्ता ने नोएल डेविड का चयन पर जोर दिया था जिनका करियर चार वनडे तक सीमित रहा। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2001 की ऐतिहासिक सीरीज में चयनकर्ता शरणदीप सिंह को टीम में रखना चाहते थे। गांगुली नहीं माने। उन्होंने हरभजन सिंह को टीम में रखवाया और जो हुआ वह इतिहास है। महेंद्र सिंह धोनी ने 2011 में मियामी में छुट्टियां मना रहे अपने दोस्त रुद्र प्रताप सिंह को टेस्ट टीम में शामिल करवा दिया था। आरपी सिंह कुछ खास नहीं कर पाए और इसके बाद फिर कभी टेस्ट मैच नहीं खेले। इस तरह से भारतीय क्रिकेट में अभिमन्यु ईश्वरन जैसे मामले पहले भी हुए हैं।
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