रुचिर मिश्रा, नागपुर श्रीनिवासनराघवन का नाम सुनते ही जेहन में 'अनुशासित', 'परंपरागत' और यहां तक कि 'बेबाक' जैसे शब्द आते हैं। राघवन भारतीय क्रिकेट के दिग्गज स्पिनर रहे हैं। राघवन- भागवत चंद्रशेखर, इरापल्ली प्रसन्ना और बिशन सिंह बेदी के साथ का हिस्सा रहे। 1960 और 70 के दशक में इस चौकड़ी की दुनिया में तूती बोलती थी। ऑफ स्पिनर राघवन के आंकड़े इस चौकड़ी में थोड़े कम प्रभावी दिखते हों लेकिन उन्होंने अपना प्रभाव गहरे तरीके से छोड़ा। आज भारत के इसी महान खिलाड़ी का 75वां जन्मदिन है। उनके नाम एक अनोखा रेकॉर्ड है जो कोई अन्य हासिल नहीं कर पाया है। आज तक 50 से ज्यादा टेस्ट मैचों में खेलने और अंपायरिंग करने वाले वह इकलौते हैं। राघवन को अपनी चौकड़ी का सबसे सटीक गेंदबाज माना जाता था। एक बार महान बल्लेबाज दिलीप सरदेसाई ने भी माना था कि वेंकट की गेंदों पर रन बनाने में उन्हें काफी परेशानी होती थी। भारतीय टीम की स्पिन चौकड़ी पूरी दुनिया में राज करती थी। इस चौकड़ी ने सभी टीमों को फिरकी का जादू दिखाया। वेंकट, प्रसन्ना और बेदी अपने आप में दिग्गज खिलाड़ी थे लेकिन वेंकट ने भी भारत की कई जीतों में अहम भूमिका निभाई। 1971 में भारत की वेस्टइंडीज में जीत में उनकी अहम भूमिका थी।
वेंकटराघवन का गेंदबाजी रेकॉर्ड
|
मैच |
विकेट |
औसत |
सर्वश्रेष्ठ |
पारी में 5 विकेट |
मैच में 10 विकेट |
स्ट्राइक रेट |
इकॉनमी |
टेस्ट |
57 |
156 |
36.11 |
8/72 |
3 |
1 |
95.3 |
2.27 |
वनडे |
15 |
5 |
108.4 |
2/34 |
0 |
0 |
173.6 |
3.74 |
फर्स्ट क्लास |
341 |
1390 |
24.14 |
9/93 |
85 |
21 |
60.1 |
2.41 |
उसी दौरे पर भारतीय टीम के एक और सितारे, सुनील गावसकर, का उदय हुआ था। गावसकर ने हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, '1971 के दौरे पर पहले टेस्ट की शुरुआत से पहले, हम दोनों एक स्थानीय टीम मैनेजर के घर डिनर पर गए। वहां हमें एक भविष्यवक्ता मिला। उसने भविष्यवाणी की कि हम दोनों के लिए यह दौरा बहुत शानदार रहने वाला है। मेरा यह पहला दौरा था और इसलिए मुझे मालूम भी नहीं था कि मैं एक भी टेस्ट खेलूंगा या नहीं , तो मैंने उस पर ज्यादा यकीन नहीं किया। वेंकट ने उस दौरे पर 29 विकेट लिए, जो किसी भी भारतीय गेंदबाज से ज्यादा थे।' गावसकर भी उस दौरे पर भारत की ओर से सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज थे। उस दौरे को याद करते हुए वह कहते हैं, 'यह जानकर बहुत खुशी हुई कि वेंकट 75 साल के हो रहे हैं। मैं सर वेंकट, जी वह असली 'सर' हैं, सर जडेजा से पहले- को जन्मदिन की बधाई देता हूं।' इरापल्ली प्रसन्ना भी ऑफ स्पिनर थे लेकिन उन्होंने वेंकट को कभी कॉम्पीटिशन नहीं माना बल्कि ये दोनों एक-दूसरे की कंपनी इन्जॉय करते थे। प्रसन्ना ने कहा, 'वह हम चारों में सबसे समझदार थे। जब हम चारों साथ खेले, तो किसी को उनकी भूमिका का अहसास नहीं हुआ। हमारी कामयाबी के पीछे वही थे। कम से कम मैं अपनी कामयाबी का श्रेय उन्हें देता हूं, क्योंकि जब भी हम दक्षिण क्षेत्र के लिए साथ खेलते थे, वह एक छोर पर शिकंजा कस लेते थे और मुझे दूसरी ओर सात या आठ विकेट मिल जाते थे। वह काफी कड़े प्रतिस्पर्धी थे।' उन्होंने कहा, 'वह हमारे लिए रोल मॉडल थे। वह स्पष्टवादी थे, सीधे अपनी बात कहते थे, उन्हें खुद पर यकीन था। वह दिल से बहुत अच्छे इनसान थे लेकिन कई बार उनकी स्पष्टवादिता को गलत समझ लिया जाता था।' प्रसन्ना ने राघवन के साथ रूम शेयर करने का एक किस्सा साझा किया। उन्होंने कहा एक टेस्ट मैच के दौरान हम रूम पार्टनर थे। वेंकट को चोट लगी हुई थी। उन्होंने कहा, 'वह अपने खेलने को लेकर आश्वस्त नहीं थे। लेकिन मैंने उन्हें सलाह दी कि आप करीबी फील्डर हैं और आपका बोलिंग स्टाइल भी ऐसा नहीं है जिस पर कमर दर्द का असर हो। उन्होंने खेला और विकेट भी लिए।' उनकी गेंदबाजी पर विकेटकीपिंग करने वाले सैयद किरमानी ने भी वेंकट की तारीफ की। हालांकि उन्होंने कहा, 'वेंकट और प्रसन्ना के बीच 'बहुत बड़ा कॉम्पीटिशन' था। वेंकट बहुत मेहनती खिलाड़ी थे। उनका प्रसन्ना के साथ बहुत कॉम्पीटिशन था। प्रसन्ना दुनिया में बेस्ट थे। चूंकि वह प्रसन्ना के साथ कॉम्पीटिशन कर रहे थे इसलिए वह प्रसन्ना और चंद्रशेखर से ज्यादा मेहनत कर रहे थे।' 1992-93 में वह अंतरराष्ट्रीय अंपायर बन गए। उन्होंने 73 टेस्ट और 52 वनडे इंटरनैशनल मैचों में अंपायरिंग की। इसके अलावा पांच टेस्ट और आठ वनडे इंटरनैशनल मैचों में वह मैच रेफरी भी रहे। पूर्व अंतरराष्ट्रीय अंपायर साइमन टफल को अपने दौर का सर्वश्रेष्ठ अंपायर कहा जाता है। टफल ने राघवन के बारे में कहा, 'मैं खुशकिस्मत था कि मैंने अपने दो टेस्ट मैच- 2000 का बॉक्सिंग डे टेस्ट और 2002 का ऐडिलेड टेस्ट- में वेंकट के साथ अंपायरिंग की। वह बहुत अच्छा फैसला लेने वाले थे। खिलाड़ी उनका सम्मान करते थे। मुझे यकीन है कि उनके अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने और कप्तानी के अनुभव ने उनके प्रदर्शन में लोगों का विश्वास बढ़ाया ही होगा। उन्हें अच्छा नहीं लगता था जब खिलाड़ी उनके निर्णय पर सवाल उठाते थे और वह इस बात को लेकर बहुत गंभीर थे कि खिलाड़ियों को अंपायर के फैसले का सम्मान करना चाहिए।'
साथ में गौरव गुप्ता
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