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नई दिल्ली हरभजन सिंह ने साल 2016 में आखिरी बार नीली जर्सी पहनी थी। वह बीते कुछ साल में आधा संन्यास को ले ही चुके थे, लेकिन आखिरकार उन्होंने शुक्रवार की दोपहर अपने करियर पर फूल स्टॉप लगा ही दिया। ‘टर्बनेटर’ के आधिकारिक रूप से संन्यास की घोषणा से भारतीय क्रिकेट के सबसे आकर्षक अध्याय का अंत हो गया। जालंधर के हरभजन को 'हरभजन सिंह' बनाने में सौरव गांगुली का अहम रोल रहा है। अपने कप्तान की आक्रामक छवि की झलक भज्जी में भी दिखती थी। हरभजन सिंह का करियर उतार-चढ़ाव से भरा रहा। विवाद भी हुए। चलिए ऐसे ही कुछ मजेदार किस्से बताते हैं। राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी (NCA) से किए गए बाहरसाल 2000 चल रहा था। हरभजन सिंह 1998 में ही टीम इंडिया के लिए डेब्यू कर चुके थे। बेंगलुरु स्थित राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी यानी NCA में उनकी ट्रेनिंग जारी थी। दिग्गज ऑफ स्पिनर इरापल्ली प्रसन्ना और श्रीनिवास वेंकटराघवन की देखरेख में वह फिरकी गेंदबाजी के गुर सीख रहे थे। तब हरभजन को फिजिकल वर्कआउट न करने और अनुशासनहीनता के चलते सस्पेंड कर दिया गया था। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि भज्जी को सच बोलने की सजा मिली थी क्योंकि उन्होंने एकेडमी में बासी खाने का विरोध किया था। गुवाहाटी पुलिस से भिड़ गए थे भज्जीपंजाब पुलिस में नौकरी के बावजूद हरभजन 2002 में गुवाहाटी में टीम होटल के बाहर पुलिसकर्मियों के साथ उलझ गए थे। विवाद तब शुरू हुआ जब ऑफ स्पिनर का अधिकारियों के साथ विवाद हो गया, जब उन्होंने एक फोटोग्राफर को अनुमति देने से इनकार कर दिया था। पुलिस से उलझने के बाद हरभजन का बोलिंग आर्म चोटिल हो गया था। गुस्से में तमतमाए हरभजन और भारतीय कप्तान सौरव गांगुली ने जिम्बाब्वे के खिलाफ गुवाहाटी में मैच खेलने से ही इनकार कर दिया था, लेकिन आयोजकों के बहुत दबाव के चलते मान गए। शराब के विज्ञापन पर भी घिर गए थे भज्जी सिख धर्म के पांच ककार में केश भी आता है। मगर हरभजन सिंह बिना पगड़ी के ही शराब के एक ब्रांड के विज्ञापन में दिखाए दिए थे। 2006 में हुई इस घटना के बाद विवाद इतना बढ़ा कि उनके शहर जालंधर में पुतले जलाए गए। रूढ़िवादी सिखों ने हरभजन पर अपनी भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया था।
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